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वल्लभसरिजी युगप्रधान महाराज साहेबके पट्टऊपर विराजमान भये, तब जगतमें हर्ष उत्पन्न भया सर्वत्र, और चतुरविध श्रीसंघ विशेष खुशीभया थका विशेष धर्मध्यान करणेमें रक्तभया, स्फुरायमाण युगप्रधानमंत्र तथा युगप्रधान लब्धिकों प्राप्त होके, निरवद्य महा विद्याओंका स्मरणकिया, और विशेष शासनोनति चतुरविध श्रीसंघका रक्षण और श्रीसंघकी विशेष वृद्धि होनेके लिये, विशेषतः श्रीसूरिमंत्र और ह्रीकार महामंत्रका जाप किया, तब सर्व सम्यक् दृष्टि देव देवीयोंके मनमें अकस्मात् आनंद याने हर्ष उत्पन्न भया, और श्रीजैनधर्मके विरोधी मिथ्या दृष्टि देवदेवीयोंके मनमें अकस्मात् क्षोभ याने भयउत्पन्न भया, और मि केइक अशुभ चिन्ह उत्पन्न हवे, और इस भारतके मध्यखंडमें सर्व मिथ्यात्वीलोकोंका मुख म्लानभया, और धर्मप्राप्ति और श्रीसंघहर्षित भये, वाद निरवद्य महाविद्याओं करके संयुक्त, श्रुत धर्मादि सर्वगुणसंपन्न, सम्पक दृष्टिदेव देवीयों करके सेवित है चरणकमल जिणोंके ऐसे भगवान श्रीमजिनदत्तसूरीश्वरजी श्रीचितोडनगरसें चतुरविध संघसें परिवरे हुवे, और श्रीदेवभद्रादि १३ आचार्योंकरके सहित पूर्वदिशा क्रमसें शुभ चंद्रादिबल आनेपर सर्वत्र भव्यकमलोंको प्रतिबोधनेके लिये विहार किया पूर्व दिशा संबंधि देशोमें, वाद दक्षिणदिशा संबंधि देशोमें वाद पश्चिम दिशा संबंधि देशोमें वाद उत्तरदिशा संबंधि देशोमें सर्वत्र अस्खलितपणे विचरते भये, और पूर्वानुपूर्वीसे अनेक मध्यभारत खंडीय साधु विहार योग्य देशोमें बहुतवार श्रेष्ठलाभ जानके विहार करते भये, और इसतरे अनेकदेशोमे ४२ वर्ष पर्यंत
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