________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
४९८
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
विकसित भये, और मेघकीधारासें सिंचाहुआ जैसाकदंब वृक्षका पुष्प फूले वैसा सर्वशरीर विकस्वरमान भया जिसका और हृदय मनमी अछे हुवे जिसके ऐसीवह श्रीमती जयश्री विनयपूर्वक हाथजोडके मस्तकमे अंजली बांधके, श्रीमान् जिल्हागर मंत्रीके प्रति इसतरह बोली के हे स्वामिन यह अर्थ जो आपने इस स्वमका मेरेको कहासो मेरे इष्ट है वांछित है विशेषकरके वांछित है और ईप्सित प्रतीप्सित
हे स्वामिन् इस अर्थ में किसी तरहका शंसय नहिं है, यह अर्थ सत्य है निसंदेह है जिसकारणसें आप कहो हो जिस हेतु युक्तिकरके आप कहो हो उसीतरेमें भी यहही अर्थ विचारुं हूं इसलिये आपका और मेरा विचार एकहि हवा है इसलिये यह अर्थ सत्य है निसंदेह है इसतरे कहे अछीतरह स्वप्नार्थ विनयपूर्वक ग्रहण करे स्वप्नार्थ ग्रहणकरके, वाजयतश्री जिल्हागर मंत्रीके पाससें आज्ञापाकर अस्खलितगतिसें चलती भई कहांभी मार्ग में आधार विलंब विश्रामादिककरके रहित राजहंसणी के सदृश प्रधान गतिसें चलती हुई जहां पर अपणा घर वासभवन सेज है, वहां आवे वहां आके इसतरे बोली, यह मेरा महामंगलीक महास्वप्न है, और कोई पाप स्वमकर के मत हणिजो, एसा कहके खमजागरण करे, सपरिवार आपजागे सेवक सखिजनोंको जगावे, और उत्तम प्रधान मंगलीक धार्मिक श्रेष्ठ मनोहर कथाप्रबंध करके, स्वप्नजागरण करती हुई रहै, वाद प्रभातसमय और सूर्यका वर्णन मंत्रीका वर्णन नगरकी सोभा करणा स्वलक्षण पाठककों बुलाणा और स्वमार्थ फलश्रवण वगेरा करणा यथायोग्य सत्कार सन्मानपूर्वक
For Private And Personal Use Only