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१ जैसलमेरादि नगरोमें अनेक ज्ञान भंडारकर्ता, २ भंडारीगोत्रनाडोल नगरमें १४७८ में प्रतिबोध कर्ता, ३ भद्रादि प्रतिमाओंके ज्ञाता, ४ भद्रकरणहार, इग्यारे भकारभि होतें हैं, इसमाफक बड़े प्रभावीक श्रीजिनभद्रसूरिजी विचरतेथके, आबूजी, शत्रुजयजी, गिरनारजी, शंखेसरजी, जेशलमेर प्रमुखठिकाणोंके विषेबिस्थापना तथा नवीनबिंबोंकी तथा नवीनचैत्योंकी प्रतिष्ठा तथा तीर्थयात्रादिकरते भए, ठिकाणे ठिकाणे पुस्तकोंके भंडार स्थापनकिये, इत्यादि अनेक तरेसें सम्यकदर्शनादि तथा दानादि ४ प्रकारके धर्मकी वृद्धिकरते भए, इसतरे श्रीवीरशासनकी चिरकालतक प्रभाबनाकरके अंतमे सर्वायु ६९ वर्षका पालके, अणशण आराधना पूर्वक संवत् १५१४ मिगशरवदि ९ नवमीकेदिन कुंभलमेरु नगरमें समाधिसे काल धर्मपायके देवलोककों प्राप्त भए, इनोकेवारे संवत् १४७४ श्रीजिनवर्द्धनसरिजीसें, पिप्पलक खरतरशाखा निकली, यह पांचमागछ भेदभया, ॥५६ ॥ उससमय श्रीजिनकीर्तिरत्नसूरिजी महाप्रभावकस्थविरभए, वह संखवालगोत्रीय, साहदीपचंद्रपिता, देवलदेवी माता, डेलाऐसा मूलनाम, वाद १४ बरसकी उंबरमें जानसजके पाणी ग्रहणको जाते मार्गमें खीमस्थलमें जान उतरीथी उहां खेजडीका बृक्षथा तब कोइ ठाकुर बोला इस समीके ऊपरसे वरछी निकाले उसकुँ मेरी पुत्री देउं तब एक डेलेका सेवक उठके बरछी खेजडी ऊपरसे निकाली उसीवक्त जो ताकत लगी उस्से प्राण निकलगया डेलेने विचारा स्त्रीके वास्ते इसका प्राणगया स्त्रीका पाणिग्रहण अनर्थको हेतुहै वाद सद्गुरुके वचनसे प्रति
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