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क्या इच्छा है सोकहो तब श्रीपार्श्वचन्द्रजीने कहा हे परमदयालो आपका हाथ और वासक्षेप मेरे मस्तकपर होना चाहिये, वादमें उसीतरे करदिया, तब श्रीपार्श्वचन्द्रसूरि हुवे, इसलिये परंपरागत उपगार निमित्त श्रीवीकानेरमें पायचन्द्रिया वडेउपासरेके अनुयायि रहे है, अर्थात् वडेउपासरेवाला करेसो मंजूर होवे है, और नहि, हालमेंभी पायचन्दियांकी मूलगादी वीकानेरही है, मन्तव्य प्ररूपणा समाचारी वगेराका फेरफारकरा वहस्वरूप इहां नहिं लिखा, ग्रंथगौरवके भयसें, विशेष वृद्धानुग सम्प्रदायादिकसे जाणना, इति पार्श्वचन्द्रमूलमतोत्पत्तिः तत्वं पुन: तत्वविदो विदन्ति, वा केवलिनः मयातु साम्प्रदायात् यथा ज्ञातम् तथा लिखितम् , ५९ ॥ तत्पट्टे ६० मा श्रीजिनमाणिक्यसूरिजी भए, तिके कूकड चोपडा गोत्रीय, साहजीवराजपिता, पनादेवी माता, संवत् १५४९ जन्म, संवत् १५६० दीक्षा, संवत् १५८२ भाद्रवावदि ९ नवमीके दिन साहदेवराजने नंदीमहोच्छव किया, श्रीजिनहंससूरिजीयें अपणे हाथ करके पदस्थापना करी, फेर गुर्जरदेश सिंधुदेशादिकमें विहारकारक, पंचनदी साधक, श्रीजिनमाणिक्यसूरिजी कितनेक वर्षतक जेशलमेर रहे, तिहांमुनि कितनेक शिथलाचारी होगए, प्रतिमा उत्थापकका मत बहोत फेला तब वीकानेरकेवासी वच्छावत संग्रामसिंह मंत्री गच्छस्थिति रखणे वास्ते, श्रीगुरुमहाराजकों बुलवाए, तब भावसें क्रियोद्धार करके, श्रीगुरुमहाराजने विचारा कि पहले देराउर नगरमें श्रीजिनकुशलमूरिजी महाराजकी यात्रा करके पीछे सर्वपरिग्रहत्यागके विचरूंगा, इसवास्ते गुरुमहा
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