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विशेष उदय पावेगा, श्रीजिनवर्द्धनसूरिजीके तरफ रहेगा उसकाविशेष उदय नहिं है, यह सुनकर श्रीसंघादिक वृद्धलोक बोले कि हे भगवन् ऐसा है तो आपश्री, श्रीजिनभद्रसूरिजीके पास जेसलमेर जावों, वादमे जेसलमेर श्रीजिनभद्रसरिजीकेपासगए, तब श्रीजिनभद्रसूरिजी महाराजने योग्य जाणके संवत् १४९७ में अपणे हाथसें सूरिपद दिया, उसीवक्त श्रीसंभवनाथजीके मंदिरकी प्रतिष्ठा तथा ज्ञानभंडारभया बादमें श्रीजिनकीतिरत्नसरिजी इस नामसें प्रसिद्ध भए,
बहुत वर्ष तक शुद्धचारित्र पालके, अनेक जीवोंको प्रतिबोध देके, धर्ममें स्थिरकरके याने सम्यक्वादिधर्म अनेक प्राणियोंको ग्रहण कराके, अपणें आत्माको उत्कृष्टपणे संयम तपादिकसें भावनकरते हुवे, अंतसमे अणशण आराधनापूर्वक संवत् १५२५ केसालमें नगरमहेवामे वैशाख शुद्धि पंचमीको समाधिसे कालधर्म प्राप्त होकर, ईशानदेव लोकमें महर्द्धिक देवपणे उत्पन्नहूए, अर्थात् स्वर्गगए, देवलोकसें चक्के मुक्ति जानेका संभव है, इसलिए महा प्रभावीक आचार्य हवे हैं, श्रीखरतर गच्छमें इन समर्थ आचार्य श्रीके नामसे शाखा हालमेभि प्रसिद्ध है, इन आचार्य श्रीका जन्म संवत् चवदेसै उगणपचास १४४९ की सालका है, सर्वायु ७६ वर्षका है, यह आचार्य श्रीदेवलोकगये वाद हालतक अपणे भक्तोंका मनोरथ पूर्ण करतें हैं, मूलचरण स्थापना वीरमपुर नगर महेवामें है और बीकानेर जेसलमेर जोधपुर थाणा सुरत आबु खंभायत राजनगरादि अनेक स्थले चरण स्थापना है, इनोंका विशेष हालवडे चरित्रसें जाणना, ग्रन्थगौरवमयादसाभिरिह न लिखितमिति, पूर्वोक्त
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