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वाले ऐसे श्रीमजिनचन्द्रसूरिजीको अपने हाथसें महा महोत्सवके साथमे श्रीमरिमंत्र देकर आचार्य पदमे स्थापितकरके और ४२ वर्ष २ मास २० दिनपर्यन्त सर्व युगप्रधानपद भोगवके और सर्व श्रीसंघकों धर्म शिक्षा देके धर्ममे स्थिर करके अपना स्वर्ग स्थान अजमेर जाणके विहार क्रमसें श्रीअजमेर नगर श्रीमजिनदत्तमूरिजी पधारे,
और अपना आयु अल्प जाणके सर्व श्रीसंघके साथ और सर्व जीवोंके साथ शुद्धभावसें खामणादिक करके, सर्वायु ७१ वर्ष कापालके समाघिसें स्वर्ग गये,, ॥+ ॥ तत्पट्टे ४५ मा, श्रीजिनचन्द्रमूरिः भए, पिता साहरासलक माता देल्हणदेवी तिसके पुत्र संवत ११९१ मिति भाद्रवासुद ८ के दिन जन्म, सं० ११९९ दीक्षा संवत १२११ वैशाखसुदि ५ के रोज विक्रमपुरके विषे रासल कृत नंदीमहोत्सव सहित श्रीजिनदत्तमूरिजीनें आप अपने स्वहस्तमैं सुरिमंत्र देकर अपने पट्ट ऊपर आचार्य पदमें स्थापन कीये, ऐसे श्रीजिनचन्द्रसूरिजी नरमणि मंडित भालस्थल खोडीया क्षेत्रपाल सेवित भए, अथ अन्यदा श्रीगुरुमहाराज गुर्जरदेश प्रति जातेथके, श्रीमालगोत्री मदनपाल श्रीचन्द्रादिकके आग्रह करके दिल्लीनगर गए, उहां वादशाहकों अनेक चमत्कार देखाके अपना भक्तिवंत किया, अरु बहुतसा धर्मका उद्योत किया, पीछे एकदा गुरुमहाराज अपनी अंत अवस्था जाणके मदनपालकों कहाकि हमारे मस्तकमें मणि है, तिसकों अग्निसंस्कार समयमें दूधसें भराभया पात्र रखके तुम ग्रहण करना, मार्गमें विश्राम लेनेके वास्ते रथीकों रखना नहीं मुहबत्ती जलाना नही ऐसा कहके महाराज सर्व आयु ३२ वरसको पालके संवत्
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