________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
४९३
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सूरिजी सर्वायु ७२ बहत्तरवरसको पालके संवत् १२७७ पाल्हणपुर नगरमें स्वर्गगये ॥ ४६ ॥
इनों के समयमें संवत् १२१३ अंचल मतहूबा, संवत् १२२६ सार्धपूनमी या मत हूवा संवत् १२५० आगमिया मत हूवा, संवत् १२८५ चित्रवाल गच्छके चैत्यवासी श्रीजगच्चंद्राचार्यजीसें तपा - नामगच्छ प्रचलित भया, श्री जिनपतिसूरिजी के पट्टे ४७ मा श्रीजि - नेश्वरसूरिजी भए, तिणोंका संवत् १२४५ मार्गशिर सुदि एकादशीके दिन भरणी नक्षत्र में जन्मः तथा मरोट नगरके भंडारी श्रीनेमिचंद्र पिता लक्ष्मीमाता, अंबड ऐसा मूलनाम, संवत् १२५५ खेड नगरवि दीक्षा वीरप्रभनाम दिया फेर संवत् १२७८ माघ सुदि छहके दिन जालोर नगर में मालूगोत्रीसाह खीमसीनें १२ बारे हजार रुपये खरचके करके नंदी महोत्सव करा, सर्व देवाचार्यनें सूरमंत्रकरके पद स्थापना करी, इस माफक श्रीजिनेश्वर सूरिजी संवत् १३३१ आसोजवदि ६ छठके दिन अणशण करके स्वर्गगए, इनों वारेमें संवत् १३३१ जिनसिंहसूरिजी से लघू खरतर शाखा निकली, यह तीसरा गच्छ भेद भया ।। ४७ ।। श्रीजिनेश्वरसूरिजी के पट्टे ४८ मा श्री जिनप्रबोधमूरिजी भए, साह श्रीचंद पिता, सिरिया देवीमाता, तिनके पुत्र संवत् १२५५ जन्म, पर्वत ऐसा मूलनाम, संवत् १२९६ फागुनवदि ५ पंचमी के दिन हस्त नक्षत्र में थिराद नगर के विषे दीक्षा ग्रहण करी, प्रबोधमूर्ति ऐसा दीक्षाका नाम भया, अनुक्रमे वाचक पद प्राप्त भए, संवत् १३३१ आसोज वदि पंचमी के दिन संक्षेप करके पाट महोच्छव
For Private And Personal Use Only