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तब उहाँके रहनेवाले रामदेवादिक श्रावकोंके अगाडी खेडेगामवासी छाजेड गोत्री मंत्रीउद्धरण साहकी प्रसंसाकरे, एकदा रामदेव श्रावक मंत्रीउद्धरणसें जाके मिले, तब तिस मंत्री रामदेव प्रतें बहोत आदर सहित अपने घरलाके विघिसें भोजनकराकै भक्तिकरी, तिस अवसरमे मंत्रवीकीस्त्री देव मंदिरमें देववंदन करने वास्ते चली जब साडा कंचूकी अनेक वस्त्रसे भरी छावडीयां साथमें ग्रहण करी, तब रामदेवनें पूछा किसवास्ते इतना वस्त्र ग्रहणकीए हैं, तब सेवक लोक कहते भए, कि यह वस्त्र साधर्मिक स्त्रीयोंको देनेकेवास्ते हमेंसां लेजाते हैं, तब रामदेव कहनेलगाकि श्रीजिनपतिसूरिजी महाराज जो तुमारी प्रशंसा करी सो योग्य है, कि जिसके घरमे ऐसे धर्मकार्य होते हैं, अथ एकदाऊधरण मंत्रवीने नागपुरमें देवघरकराया, तबबिंब प्रतिष्ठानिमित्त मंत्रवीनें अपना कुलगुरुकों बुलवाए, परंकोई कारण करके मुहूर्त उपर न आए और ऊधरण की स्त्री खरतर गच्छके श्रावककी पुत्री थी, तिसनें मंत्रवीके कुलगुरु प्रतें हीनाचारी मानके शुद्धसंवेग रंगधारी श्रीजिनपतिसूरिजी महाराजकों बुलवाए आचार्य मुहूर्त्तके ऊपर उहां आए, तब उनोंके पास सेती प्रतिष्ठा करवाई, ऊधरण मंत्री कुटुंब सहित खरतर श्रावक होगए, तिस मंत्रवीके कुलधर नामें पुत्र भया जिसने बाहडमेर नगरमें उंचा तोरण सहित मंदिर वनवाया, तथा फेर मरोट नगरमें रहनेवाले श्रीनेमिचंद्र भंडारीने परिक्षा करके शुद्ध संवेगवंत श्रीगुरुप्रतें जानके चारित्रकी इछा करता थका अंबड नामें अपणा पुत्र गुरूमहाराजके भेट करा, इस माफक श्रीजिनपति
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