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विहार करके चतुरविध श्रीसंघकी वृद्धिरूप बहुतसा लाभ प्राप्त होकर अपने आत्माको कृतकृत्य मानते भये, और इसतरे अनेक लक्ष संख्यक श्रावक सम्यक्त्वधारी और देश विरतिको धारनेवाले भये,
और इसीतरे अनेक लक्षसंख्यक सम्यक्त्वधारी और देश विरति धारी श्राविकायें भइ, हजारोहि संख्यावाले साधु भये, और हजारोंहि संख्यावाली श्रेष्ठ साधवी भई, और अनेक आचार्य उपाध्याय प्रवर्तक स्थविर गणावच्छेक गणिवगेरा पदस्थ भये और आचार्या उपाध्याया महत्तरा गणावच्छेदिनी प्रवर्तिनी गणणी स्थविरादि पदधरा साधवीये भई, और चार निकायके अनेक देव देवीयां सेवक भये, और सेंकडो वा हजारों घर वा कुंटुंबोंवाले अनेक राजा महाराजा गणनायक दंडनायकादिकोंको और महर्द्धिक चार वर्णवाले मनुष्योंको भव्य सिद्धान्तानुसार देशनाओं करके अनेक तात्कालिक चमत्कारों करके ओसवालादि श्रीजैन जातिकी और खरतर संघकी वृद्धि करते भये, और अनेक मूलगोत्र, उप गोत्र शाखा अट(ड)कादि करके श्रीजैनजातिको अलंकृतकरी, और इसतरे युगप्रधान लब्धिके उदयसे इस भारतवर्षमें जैनजातिके ऊपर महान् उपगार करके, श्रीवीरशासनकी प्रभावना करके और धर्म जिज्ञासुक अनेक भव्योंको धर्ममे स्थिर करके और राशलसाह और देल्हणदेवी पिता और माता है जिनोंके, और अपने पदको प्रभावन करनेवाले और मणिमंडित भालस्थल जिनोका और देवोपासित चरण कमल जिनोंके, और धरणेन्द्र पद्मावतीसें वरकों प्राप्त होनेवाले, महान् प्रभावक और छोटे दादाजीके नामसें प्रसिद्धिपाने
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