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४५१ तपगछाधिराज भट्टारकश्रीहीरविजयसरिप्रसादीकृत हीरप्रश्नोत्तर ग्रंथमेभी लिखा है कि-जिनगृहे निशायां नाट्यादिकं विधेयं नवा जिनगृहे निशायां नाट्यादिविधेनिषेधोज्ञायते यत उक्तं रात्रीननंदिर्नवलिः प्रतिष्ठा, न स्त्रीप्रवेशो न च लास्यलीला इत्यादि किंचकापितीर्थादौ तत्क्रियमाणं दृश्यते तत्तुकारणिकमिति बोध्यम् व्याख्या-श्रीजिनमंदिरमें रात्रिको नाटकपूजादि भक्ति करनी वा नहिं १ उत्तर-श्रीजिनमंदिरमें रात्रिको नाटक पूजादि भक्तिकरना यह विधि निषेध है, क्योंकि शास्त्रोंमें कहा है कि श्रीजिनमंदिरमें रात्रिमें नंदिनिषेध बली पूजा तथा प्रतिष्ठा निषेधश्रीजिनमंदिरमें रात्रिको स्त्रियोंका प्रवेश निषेध नाटक पूजा भक्तिरात्रिको निषेध है, कोई तीर्थादिमें वहकरनेमें आता हुवा देखते हैं, सो तो कारणिक है ऐसा जानना औरभी लिखा है कि श्राद्धनां रात्री जिनालये आरात्रिकोत्तारणं युक्तं नवा श्राद्धानां जिनालये रात्रौ आरात्रिकोत्तारणं कारणे सति युक्तिमनान्यथा व्याख्या-श्रावकोंको रात्रिमें श्रीजिनमंदिरमें आरति पूजा करनी युक्त है वा नहिँ ? उत्तर श्रावकोंको श्रीजिनमंदिरमें रात्रिमें आरति पूजा करनी कारण होतो युक्त है, अन्यथा रात्रिकों श्रीजिनमंदिरमें आरती पूजा करनी युक्त नहिं है तथा-कायोत्सर्गस्थितजिनप्रतिमानां चरणादि परिधापनं युक्तं नवा? जिनप्रतिमानां चरणादि परिधापनं तु सांप्रत व्यवहारेण न युक्तियुक्तं प्रतिभाति ॥ व्याख्या-कायोत्सर्गस्थितश्रीजिनप्रतिमाके चरणादि अंगको वस्त्र पहराने रूप पूजा युक्त है वा नहिं ? उत्तर श्री
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