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जिनप्रतिमाके चरण आदि अंगको वस्त्र पहरानेरूप पूजा वर्त्तमान कालके व्यवहारसें युक्तियुक्त नहिं भासती है - यह श्री जिनप्रतिमाकी वस्त्रपूजाका निषेध तथा वर्त्तमानकालमें श्रीजिनप्रतिमाकी चंदनविलेपनादिसें अंगपूजा करती हुई बहुत तरुणस्त्रियोंको ऋतुधर्म होता है इसी अभिप्रायसें उन तरुणस्त्रियोंको श्रीमूलनायक जिनप्रतिमाकी केवल चंदनविलेपनादिसें अंगपूजाका निer आशाना और अधिष्ठायकदेवका लोप दुःकर्मबंध इत्यादि नहिं होनेके लिये उपर्युक्त महानुभावोंके वचन उचित विदित होतें हैं, सोतपोटमतके पक्षावलंबित द्वेषभावके दुराग्रहको त्याग - करखपरहित के लिये सत्यस्वीकार करें, अन्यथा निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर आशातना नहो इत्यादि शास्त्रप्रमाण संमत सत्य प्रकाशित करें
१ प्रश्न - स्त्रीके ऋतुधर्मद्वारा श्रीजिनप्रतिमाकी महाआशातना होती है, उससे वह स्त्री विराधक भावको प्राप्तहोकर संसार में अनेक दुःख युक्तभवभ्रमणकरती है, इसीलिये अत्यंत भ्रष्टता के विकारको धारण करनेवाली ऋतुवंती स्त्रीको श्रीजिनप्रतिमाकी अंगपूजा दर्शनादि नहिं करना मानते हो तो इस वर्त्तमान विषमकाल में श्रीजिनप्रतिमाकी चंदन विलेपनादिसें अंगपूजा करती हुई कई तरुण स्त्रियोंके अत्यंत भ्रष्टमहामलिन ऋतुधर्म होता है, उससे उसप्रतिमाधिष्ठायक देवका लोप और महाआशातना दुःकर्मबंध इत्यादि होता है, वास्ते उन तरुण स्त्रियोंको श्रीमूलनायक जिनप्रतिमाकी चंदन विलेपनादिसे अंगपूजा नहिं करना क्यों नहिं मानते हो ?
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