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वेला अत्यंत भ्रष्ट महामलीन ऋतुधर्मद्वारा श्रीजिनराजकी प्रतिमाकी अंगपूजामें महाआशातनासें विराधनाकरनी उचित है कि अंग पूजा नहिं करनेरूप आशातनाके अभावसें आराधना करनी उचित है इन आठ प्रश्नोंके आठ उत्तर सप्रमाण पूर्वोद्दिष्टविषयको नहिं माननेवाले सत्यप्रकाशित करें, इत्यलंविस्तरेण, नमःतीर्थाय,
॥ जिनाणाविरुद्ध शास्त्राणाविरुद्ध सुविहितक्रमागत परंपराविरुद्ध देशआचरणालक्षणविरुद्ध सर्व आचरणा लक्षणविरुद्ध सुविहित गछोंका तथा आचार्योंका सत्यप्ररूपक आचार्योंका अवर्णवाद करे, अशुद्ध प्ररूपक का पक्षकरे, और अपनी अथवा अपने पूर्वजोंकी प्रमादसे, छमस्थपणेसें वा रागद्वेषसें भया हठाग्रह उससे भइ भूलकों कबूल न करे छतिशक्तिसें न सुधारे, वह गछ वा वह पुरुष आराधक या विराधक है और निश्चय व्यवहारसहित इस लोकपर लोकके आराधक युगप्रधानोंकी शुद्धसमाचारी वा गछव्यवस्था दिखलाते हैं, तथाहि
सामायारिं पवक्खामि, सबदुक्खविमोक्खणि, जंचरित्ताणं निगंथा, तिन्ना संसारसागरं ॥१॥ पढमाआवस्सियानाम, विइयाय निसीहिया, आपुच्छणायतइया, चउच्छीपडिपुच्छणा ॥२॥ पंचमाछंदणानाम, इच्छाकारो छ?ओ, सत्तमो मिच्छकारोय, तहकारोय अट्ठमो ॥३॥ अम्भूठाणं नवम, दसमा उवसंपया, एसाद संगासाहूणं, सामायारी पवेइया ॥ ४ ॥ गमणे आवस्सियं कुजा, ठाणेकुजानिसीहियं, आपुच्छणा सयंकरणे, परकरणे पडिपुच्छणा ॥५॥ छंदणा दबजाएणं, इच्छाकारोयसारणे, मिच्छाकारोय
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