________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३९३
स्कंद १५ कुरु १६ प्रियंकर १७ प्रिय मित्र १८ वह्नि १९ कंदर्प २० हंस २१ एकजंघ २२ घंटापथ २३ दजक २४ काल २५ महाकाल २६ मेघनाद २७ भीम २८ महाभीम २९ तुंगभद्र ३० विद्याधर ३१ वसुमित्र ३२ विश्वसेन ३३ नाग ३४ नागहस्त ३५ प्रद्युम्न ३६ कंपिल ३७ नकुल ३८ आह्लाद ३९ त्रिमुख ४० पिशाच ४१ भूतभैरव ४२ महापिशाच ४३ कालमुख ४४ शुनक ४५ अस्थिमुख ४६ रेतोवेध ४७ स्मशानचार ४८ कलिकल ४९ ( केलिकल ४९ ) भृंग ५० कंटक ५१. विभीषण ५२ इति अथ अष्टौं भैरवनामानि भैरव ९ महाभैरव २ चंडभैरव ३ रुद्रभैरव ४ कपालभैरव ५ आनंदभैरव ६ कंकालभैरव ७ भैरवभैरव ८ इति कपिल ९ पिंगल २ पूर्णभद्र ३ माणिभद्र ४ यहनामांतरसंभवे देशकार्यस्थान भेदतः द्विपचाशत्संख्याकाः क्षेत्रपालाः भवन्ति अन्येचभवनपतिवानव्यं तर ज्योतिष्कवैमानिक चतुर्विधनिकायार्न्तगत केचित्देवाः देव्यश्च श्री पूज्यनां नामग्रहणेन पर्युपासनां कुर्वन्सन् तिष्ठन्ति जगतितले " बाद गुरुमहाराज श्रावकोंके पास ६४ पाटिया मंगाय के मंत्रके श्रावकण्योंकों सोंपदिये, और कहा आज व्याख्यानमें ६४ स्त्रीयों नवी आवेगी उनोंको पाटियां ऊपर बैठाणां, पीच्छे जब व्याख्यानमें श्रावकण्योंके रूपसे ६४ योगण्यों आई, नमस्कार करके श्रावकण्यों में पाटियां ऊपर बैठगई, व्याख्यानपूरणहुए पीच्छे जब उठनेलगी, तब उठशकी नहि बाद बोली हम सबहितो आपकों छलनें आईथी परंतु आपनें हम सर्वकों छललीनी अब हम सर्व आपकी आज्ञा करणें वाली हो के, रहेंगी हमकों
For Private And Personal Use Only