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शंका करनी अनुचित है क्योंकि शास्त्रोंकी संमतिसे श्रीजिनप्रतिमाकी पूजा करनी और आशातनादि होनेके कारणों से नहीं करनी यह दोनों मंतव्य मानने पड़ेंगे देखिये कि श्रीतीर्थकरमहाराजकी प्रतिमा तीर्थकरतुल्यमानी है इसीलिये श्रीजिनप्रतिमाकी पूजा हित सुख मोक्ष आदि फलकी हेतु है और वह श्रीजिनप्रतिमाकी पूजा श्रीज्ञाताधर्मकथा सूत्र आदि शास्त्रोंमें द्रौपदी आदिने करी लिखी है वास्ते पुरुषोंको तथा स्त्रियोंको श्रीजिनप्रतिमाकी पूजा करनी ऐसा श्रीगणधर आदि महाराजोंका उपदेश है तथा श्रीगणधर महाराजोंने जिसतरह श्रीठाणांग सूत्रआदि ग्रंथोमें (अहिमांस सोणिए इत्यादि) अर्थात् हड्डी मांस रुधिरादिसे श्रीजिनवाणीकी आशातना नहीं होनेके लिये सूत्रअध्ययन (पठन पाठन ) नहीं करना लिखा है इसीतरह श्रीप्रवचनसारोद्धार आदि अनेक ग्रंथोंमें (खेल इत्यादि) अथोत् नाकसम्बधीमल इत्यादि ये तथा (लोहिय इत्यादि ) अर्थात् शरीरसम्बधी ( खून ) रुधिरादि से श्रीजिनप्रतिमाकी आशातना नहीं करना लिखा है वास्ते कोई पुरुष व स्वीके शरीरद्वारा अकस्मात् (खुन ) रुधिरादि गिरता हैं तो आशतनादि नहीं होनेके कारणोंसे श्रीजिनप्रतिमाकी चंदनादि विलेपनद्वारा अंगपूजा नहीं करे इसीलिये श्रीमत् बृहत्खरतरगच्छनायकयुगप्रधानदादाजी श्रीजिनदत्तमुरिजी महाराजने इस दुस्सम कालमे श्रीजिनप्रतिमाकी चंदनविलेपनादिसे अंगपूजा करती तरुण स्त्रियोंको अकालवेला प्रगट हुआ ऋतुधर्म उसकी बहुत मलिनताके दोषसे याने पूजासमय अतुधर्मवाली हुई उस महामलिन
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