Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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भयकर से भय कर अकल्पनीय प्रचड विस्फोट हुमा, जिससे सूर्य के कई एक बडे रटे भीमकाय टुकडे छिटक पडे । वे ही टुकडे अरबो और खरवो वर्षों तक सूर्य के चारो ओर अनतानत पर्यायो में परिवत्तित होते हुए चक्कर लगाते रहे, और वे ही टुकडे आज बुध, मगल, गुरु, शुक्र, शनि, चन्द्र और पृथ्वी के रूप मे हमारे सामने है । पृथ्वी भा सूर्य का ही टुकडा है और यह भी किसी समय आग का ही गोला थी, जो कि अमस्य वर्षों में नाना पर्यायो तथा प्रक्रियाओ में परिवत्तित होती हुई आज इस रूप मे उपस्थित है । उपरोक्त बयान जन-माहित्य मे वणित "आरा परिवर्तन" के समय की भयकर अग्नि वर्पा, पत्थर वर्पा, अघड वर्षा, असहनीय और कल्पनातीत सतत् जलधारा वर्मा, एव अन्य कर्कश पदार्थो की कठोर तथा शब्दातीत रूप मे अति भयकर बा के वर्णन के साथ विवेचना की दृष्टि से कमी समानता रखता है ? यह विचारणीय है।
ऐतिहासिक विद्वानो द्वारा वणित प्राकऐतिहासिक युग के, तथा प्रकृति के माप प्राकृतिक वस्तुओ द्वारा ही जीवन-व्यवहार चलाने वाले, मानवजीवन का चित्रण भीर जैन साहित्य में वर्णित प्रथम तीन आराओ मे सम्बन्धित युगल-जोडी के जीवन का चित्रण गन्दान्तर , और रूपान्तर के साथ स्तिना और किस रूप मे मिलता जुलता है ? यह एक वीज का विपय है ।
जैन दर्शन हजारो वर्षों मे वनस्पति आदि में भी चेतनता और आत्म तत्व मानता जा रहा है, माधारण जनना नीर अन्य दर्शन इस बात को नहीं मानने से. परन्तु श्री जगदीग चन्द्र मोम ने अपने वैज्ञानिक तरीको से प्रमाणित कर दिया है कि वनम्पति में भी नेतनता और आत्म तत्त्व है। अब विश्वका मारा विद्वान वर्ग इस बात को मानने लगा है।
साहित्य और कला
भगवान महावीर स्वामी के युग मे लेकर आज दिन तक इन पच्चीम कायों में 7-4 ममय तन-माज में उच्च कोटि केय लेबको का विपुल
ओर मिलोना गा रहा है, जिनका सारा जीवन वित म, मनन