Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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ऐगा मजा वैज्ञानिकों ने दी है । इतका कहना है कि इस आकाश मे ऐसे-ऐसे तार है, जिनका प्रकाग यदि यहा तक आसके तो उस प्रकाश को यहाँ तक आने में न कडी 'आलोक-वर्ष' तक का समय लग सकता है । ऐसे ताराओ की. सस्या लौकिक भाषा में अरबो खरबो तक की खगोल-विज्ञान वतलाता है । आकाश-गगा बनाम निहारिका नाम से ताराओ की जो अति सूक्ष्म झाकी एक लाइन स्प से आकाग मे रात्रि के नौ बजे के बाद से दिखाई देती है, उन ताराओ की दूरी यहा से मैकडो 'मालोक-वर्प' जितनी वैज्ञानिक लोग का करते हैं।
जैन-दर्शन का कथन है कि (३८११२९७० मनx१०००) इतने मन वजन का एक गोला पूरी शक्ति से फेंका जाने पर छ महीने, छ दिन, छ: पहन, छ घडी और छ. पल मे जितनी दूरी बह गोला पार करे, उतनी दूरा का माप "एक राजू' कहलाता है। इस प्रकार यह मपूर्ण ब्रह्माड यानी असिल लोक केवल चौदह राजू जितनी लम्बाई का है । और चाडाई मे केवल सात गजू जितना है।
अब विचार कीजिएगा कि वैज्ञानिक सैकडो और हजारो मालाक वर्ष, नामक दूरी परिमाण में और जैन-दर्शन सम्मत राजू का दूरी परिमाण में कितनी सादृश्यता है ?
इसी प्रकार नंकडो और हजारो आठोक वर्ष जितनी दूरी पर स्थित जो तारे है, वे परम्र में एक दूसरे की दूरी के लिहाज ने-करोडो और अरवो माइल जितने अन्तर वाले है और इनका क्षेत्रफल भी करोटो और अरवो गा:7 जितना है, मग वेनानिक कयन की तुलना जैन-दशन सम्मत वैमानिक देवनागो के विमानी जी पारम्परिक दूरी आर उनके क्षेत्रफल के साथ कीजियेगा, ना पता चलता है कि क्षेत्रफल के लिहाज से, परम्पर में कितना चपन माम्य है।
मानिस देवताओं के विमान रूप क्षेत्र परस्पर की स्थिति की दृष्टि गे एर मरे ने धरबी माल दूर होने पर भी मूर यानी मुख्य इन्द्र के विमान में जाना गमय "घंटा" की नुमुन घोषणा होने पर रोष