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जनविद्या
अर्थात् भट्ट प्रभाकर ने शुद्ध भाव से पंचपरमेष्ठियों को नमस्कार कर और अपने परिणामों को निर्मल करके श्री जोइन्दु जिन से प्रार्थना की ।
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ब्रह्मदेव ने 'परमात्मप्रकाश' की टीका में कविश्री को सर्वत्र योगीन्दु लिखा है ( पृष्ठ 1, 5, 346 आदि) । श्रुतसागर ने 'योगीन्द्रदेव नाम्ना भट्टारकेंण' कहा है ( पृष्ठ 57 ) । 'परमात्मप्रकाश' की कुछ हस्तलिखित प्रतियों में 'योगीन्द्र' शब्द का प्रयोग हुआ है । 'योगसार' के अन्तिम दोहे में ' जोगिचन्द' नाम का उल्लेख द्रष्टव्य है ( पृष्ठ 394 ) । 'योगसार' की जयपुर के ठोलियों के मन्दिरवाली प्रति के अन्त में लिखा है - " इति योगीन्ददेवकृत प्राकृत दोहा के श्रात्मोपदेश सम्पूर्ण ।” उक्त प्रति का अन्तिम दोहा इस प्रकार है । यथा
संसारह भयभीयएग जोगचन्द मुलिए ।
प्पा संवोहरण कया दोहा कव्वु मिणे ॥
इस प्रकार कविश्री ने अपने को 'जोइन्दु' या जोगचन्द ( जोगिचन्द ) ही कहा है यह 'परमात्मप्रकाश' और 'योगसार' में प्रयुक्त नामों से स्पष्ट है । इन्दु और चन्द्र पर्यायवाची शब्द हैं । व्यक्तिवाची संज्ञा के पर्यायवाची प्रयोग भारतीय काव्य में परिलक्षित हैं। डॉ. ए. एन. उपाध्ये ने भागचन्द्र को 'भागेन्दु' और शुभचन्द्र को 'शुभेन्दु', प्रभाचन्द्र को 'प्रभेन्दु' आदि संज्ञाओं के रूप-परिवर्तन से अपने इस मत को पुष्टता प्रदान की है ( प. प. भूमिका पृ. 57 ) ।
वस्तुतः कविश्री का नाम 'जोइन्दु' योगीन्दु या जोगिचन्द ही है । योगीन्दु योगीचन्द्र का रूपान्तर है और इसका अपभ्रंश रूप जोइन्दु है ।
समय निर्धारण
श्री गांधी जोइन्दु को प्राकृत वैयाकरण चंड से भी पुराना सिद्ध करते हैं । अतएव उनके मतानुसार कविश्री का समय विक्रम की छठी शताब्दी हुआ । आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी कविश्री को आठवीं - नवीं शताब्दी का कवि स्वीकारते हैं । 2 श्री मधुसूदन मोदी ने कविश्री को दसवीं शती में होना सिद्ध किया है। श्री उदयसिंह भटनागर ने लिखा है कि प्रसिद्ध जैन साधु जोइन्दु ( योगीन्दु) जो एक महान् विद्वान्, वैयाकरण और कवि था, सम्भवतया चित्तौड़ का ही निवासी था । इसका समय विक्रम की दसवीं शती था । हिन्दी साहित्य के बृहत् इतिहास में कविश्री को ग्यारहवीं शती से पुराना माना गया है। 5 डॉ. कामताप्रसाद जैन कविश्री जोइन्दु को बारहवीं शती का 'पुरानी हिन्दी का कवि' बताते हैं । डॉ. ए. एन. उपाध्ये ने कविश्री जोइन्दु को ईसा की छठी शताब्दी का होना निश्चित किया है। 7 डॉ. हरिवंश कोछड ने कविश्री का समय आठवीं नवीं शताब्दी माना है । 8 भाषाविचार से जोइन्दु का समय आठवीं - नवीं शताब्दी के लगभग प्रतीत होता है ।
रचनाएं
परम्परा से जोइन्दु के नाम पर निम्नलिखित रचनाएं मानी जाती हैं- 1. परमात्मप्रकाश (अपभ्रंश), 2. योगसार ( अपभ्रंश), 3. नौकारश्रावकाचार ( अपभ्रंश ), 4. अध्यात्म