Book Title: Jain Vidya 09
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 114
________________ 100 जनविद्या राज→ राम→ राय से परे णो, णा और ङि (सप्तमी एकवचन का प्रत्यय) होने ज के स्थान पर विकल्प से इ हो जाता है । इस सूत्र का उपयोग 3/50 और 3/51 में प्रांशिक हो गया है । शेष निम्नलिखित है। राज→ राअ→ राय-(राज+ङि) = (राइ+ङि) सूत्र डे म्मि : 3/11 और सूत्र डे : के आधार से यहाँ ङ = म्मि होगा :: (राइ+ङि) = (राइ = म्मि) = राइम्मि (सप्तमी एकवचन) 45 इणममामा 3/53. इणममामा [(इणं) + (अमा) + (आमा)] इणं (इणं) 1/1 अमा (अम्) 3/1 प्रामा (ग्राम्) 3/1 (प्राकृत में) राज से परे अम् सहित और आम सहित 'ज' के स्थान पर इणं (विकल्प से) होता है। राज से परे अम् (द्वितीया एकवचन का प्रत्यय) और पाम् (षष्ठी एकवचन का प्रत्यय) सहित ज के स्थान पर इणं विकल्प से होता है । राज-(राज+अम्) = राइणं (द्वितीया एकवचन) (राज+आम्) = राइणं (षष्ठी बहुवचन) 46. ईद्भिस्भ्यसाम्सुपि 3/54 ईद्भिस्म्यसाम्सुपि [ (ईत्) + (भिस्) + (भ्यस्) + (प्राम्) + (सुपि)] इत् (इत्) 1/1 [(भिस्)-(भ्यस्)-(आम्)-(सुप्) 7/1] (प्राकृत में) राज से परे भिस्, भ्यस्, पाम् और सुप् होने पर (ज के स्थान पर) ईत्-→ ई (विकल्प से) हो जाता है । राज से परे भिस् (तृतीया बहुवचन का प्रत्यय) भ्यस् (पंचमी बहुवचन का प्रत्यय) पाम् (षष्ठी बहुवचन का प्रत्यय) और सुप् (सप्तमी बहुवचन का प्रत्यय) होने पर ज के स्थान पर ई विकल्प से हो जाता है । राज- (राज+भिस्) भिस् = हि, हिँ, हिं (3/7) (3/16) (3/124) (राई+हि, हिँ, हिं) = राईहि, राईहि, राईहिं (तृतीया बहुवचन) - (राज+भ्यस्), भ्यस् = तो, ओ, उ, हिन्तो, सन्तो (3/16) (3/9, 3/124) (राई+तो, ओ, उ, हिन्तो, सुन्तो) = राईत्तो→ राईतो राईयो, राईउ राईहिन्तो, राईसुन्तो (पंचमी बहुवचन) -(राज+पाम्), पाम् = ण (3/124) (3/6). (राई+ण) = राईण (षष्ठी बहुवचन)

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