Book Title: Jain Vidya 09
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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जनविद्या
हरि (पु.)- हरीत्तो→ हरित्तो,
हरीत्तो→ हरित्तो, हरीओ, हरीउ, हरीप्रो, हरीउ, हरीहिन्तो हरीहिन्तो, हरीसुन्तो गामणी (पु.)-गामणीत्तो→ गामणित्तो, गामणीत्तो→ गामणित्तो, गामणीओ,
गामणीग्रो, गामणीउ, गामणीउ, गामणीहिन्तो, गामणीसुन्तो
गामणीहिन्तो साहु (पु.)—साहूत्तो→ साहुत्तो, साहूत्तो→ साहुत्तो, साहूो, साहूउ, साहूओ, साहूउ,
साहूहिन्तो, साहूसुन्तो साहूहिन्तो सयंभू (पु.)-सयंभूत्तो, सयंभुत्तो, । सयंभूत्तो→ सयंभुत्तो, सयंभूत्रो, सयंभूउ, सयंभूत्रो, सयंभूउ,
सयंभूहिन्तो, संयभूसुन्तो सयंभूहिन्तो वारि (नपुं.) वारीत्तो→ वारित्तो, वारीत्तो→ वारित्तो, वारीयो, वारीउ, वारीओ, वारीउ,
वारीहिन्तो, वारीसुन्तो वारीहिन्तो महु (नपुं.)-महूत्तो→ महत्तो, महूो, महूत्तो→ महत्तो, महूरो, महूउ, महूहिन्तो, महूउ, महूहिन्तो
महसुन्तो 54. . 3/128
के [(:)+ (डे)] : (ङि) 6/1 डे (डे) 1/1 (प्राकृत में) शेष में अर्थात् इकारान्त, उकारान्त, पुल्लिग-नपुंसकलिंग शब्दों से परे ङि के स्थान पर डे→ ए नहीं होता है । इकारान्त, उकारान्त पुल्लिग-नपुंसकलिंग शब्दों से परे ङि (सप्तमी एकवचन का प्रत्यय) के स्थान पर ए प्रत्यय नहीं होता है । डि = ए और म्मि (3/11) इनमें से केवल 'म्मि' ही होगा। हरि (पु.)-(हरि+ङि) = (हरि+म्मि) = हरिम्मि (सप्तमी एकवचन) गामणी (पु.)-(गामणी+ङि) = (गामणी+म्मि) = गामणीम्मि→ गामरिणम्मि
(सप्तमी एकवचन) इसी प्रकार साहुंम्मि, सयंभूम्मि→ सयंभुम्मि वारिम्मि, महुम्मि (सप्तमी एकवचन) 55. एत् 3/129
एत् (एत्) 1/1 (प्राकृत में) (शेष में) (अर्थात् आकारान्त स्त्रीलिंग इकारान्त-उकारान्त पुल्लिग, नपुंसकलिंग व स्त्रीलिंग शब्दों से परे) (शस्, भिस् टा, भ्यस् व सुप् होने पर) अन्त्य
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