Book Title: Jain Vidya 09 Author(s): Pravinchandra Jain & Others Publisher: Jain Vidya Samsthan View full book textPage 1
________________ समदिहि दु.. AMERO धमाधम भुतहा Map of णाणुज्जीवो जीवो जैन विद्या संस्थान श्री महावीर जी महावीर निर्वाण दिवस 2515 जैनविद्या योगीन्दु विशेषांक 9 कसूत्राणां विकरणभूता परमात्म का चार त्रिः समाप्ता ॥ नाचाययेषपादानां संवि वाक्यानि मित्रनिनाद्यतानि सुख वघार्थ किंग परिभाषा सूत्रपदया तानस मासात रंगों का शो नर्सिंगव वन क्रियाकारक संधि समासविशेष्यविशेषण वा समा सादिक am's नया विहिरिति परमात्मका चाहत्रेयारखाने ज्ञात्वा किं कर्त सहमुदज्ञानाने बैंक स्वभाव हा निर्वि हिउदा सानाहींनिरेजनश्रद्धामस म्यान ज्ञानानुष्टानपरिन प्रकि दनिअर माल पर मोल सहजान छोह रागद्वेष मोह काध मानमायो लोभडिय कायक कमव्यकर्मी नाक ख्याति खालात दृष्टता भरत जोगाँ रुपति दोमायादिविनापरिणाम + मिथ्यो | तिसन्या गचये कासवयेर मानवचन कार्यकारितानुमते उधनिश्चयेनं तथासत्या जातिनिरंतरंावनाकर्त्तव्ये तिला परमात्मा का स पंथविया ऐसा नाथमंत ४००० नमस्तु कल्पा स्यात् ॥ संवत २६४८ समय भावनेमुदितथा विवासरे श्रीमल से सरस्वती गछे तुलाकार गोश्री कुंदाचार्यान्चयेनहारक श्रीधर्मा कीर्तिवान नारी शील एवासन बहारक देवा तदा म्रायैक्षांतिका खीचारोत्र, श्रीतमीक्षणीक्षातिका श्रीधर्मम। सिमला श्रीमकाम atanamaहररक श्री वीज यकीर्तिता है मिथ्याचार्य श्री यही कार्त्तिश्रीम वर्मा मारत मीव्यर्य डिके सवा एतेषामौलीति का श्रीयरिमलाई स्व के परमात्मा का खान श्रीनंनामवृत्ति से युक्त लिपिसापेडिकेसवस्य दते ॥ज ज्ञानावर ती कर्म क्षयार्थे ॥ ज्ञानवा 'मूनान दानेन निर्नयानया दानातषी निस्य निर्व्याजानवे ॥सुभम ॥ ॥श्री टी पूरी जैनविद्या संस्थान ( INSTITUTE OF JAINOLOGY ) दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी राजस्थान May परमातPage Navigation
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