Book Title: Jain Vidya 09
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 11
________________ (v) कुछ रचनाकरों ने अध्यात्मपरक रचनाएं भी की हैं उनमें प्रमुखतम हैं मुनि श्री जोगिचन्द (योगीन्दु देव) जिनके व्यक्तित्व तथा कृतित्व से जिज्ञासुओं को परिचित कराने हेतु 'जनविद्या संस्थान, श्रीमहावीरजी' की शोधपत्रिका 'जनविद्या' का यह नवम अंक प्रकाशित है । पाठक देखेंगे कि मुनिश्री सच्चे अर्थों में मानवतावादी थे। उन्हें किसी धर्मविशेष से कोई पक्षपात नहीं था। वे मानव-मानव के बीच खड़ी दीवारों को ध्वस्त कर सच्चे मानवधर्म को प्रतिष्ठित करना चाहते थे। उनकी दृष्टि लोकोन्मुखी थी। वे मानव के वास्तविक स्वरूप को उजागर करना चाहते थे, उसे परमब्रह्म परमेश्वर बनाना चाहते थे । अपभ्रंश भाषा के प्राध्यात्मिक कवियों में मुनिश्री जोगिचन्द का वही स्थान है जो प्राकृत भाषा के आध्यात्मिक कवियों में कुन्दकुन्दाचार्य का । जिस प्रकार प्राकृत भाषा के ज्ञात आध्यात्मिक रचनाकारों में कुन्दकुन्द का स्थान सर्वप्रथम एवं सर्वोपरि है उसी प्रकार अपभ्रंश भाषा में कवि योगीन्दु देव का । प्राचार्य कुन्दकुन्द ने प्रात्मा के बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा इस प्रकार तीन भेद किये हैं। योगीन्दु ने मूढ़, विचक्षण और परब्रह्म इन तीन भेदों में प्रात्मा के स्वरूप को बांट उन पर विशद विवेचन प्रस्तुत किया है । इन भेदों के नाम के अतिरिक्त तात्त्विक दृष्टि से कुन्दकुन्द और योगीन्दु में अन्य कोई उल्लेखनीय मतभेद नहीं है। इसीलिए टीकाकारों ने मूढ का अर्थ बहिरात्मा, विचक्षण का अर्थ अन्तरात्मा तथा परब्रह्म का अर्थ परमात्मा किया है। दोनों ही पूजा के लिए गुणों को महत्त्व देते हैं किसी नाम विशेष या वेष-विशेष को नहीं। दोनों ही प्रात्मा के उस रूप के उपासक हैं जो कर्ममल से रहित निरंजन एवं रत्नत्रय संयुक्त हो जिसमें किसी प्रकार के संकल्प-विकल्प नहीं हों जिसे समस्त परद्रव्यों से छूटकर आत्मतत्त्व की उपलब्धि हो गई हो फिर वह चाहे कोई भी हो, कैसा भी हो और कहीं भी हो । आशा है गत अंकों की भांति ही पत्रिका का यह अंक भी पाठकों को पसन्द आयगा एवं इस क्षेत्र में कार्यरत शोधार्थियों को उनके ज्ञानार्जन की प्रक्रिया में सहायक सिद्ध होगा। इसमें प्रकाशनार्थ जिन रचनाकारों की रचनाएँ प्राप्त हुई उनके प्रति हमारा प्राभार । भविष्य में भी उनसे इसी प्रकार सहयोग की अपेक्षा है। वे सब महानुभाव भी जिन्होंने इस अंक के सम्पादन, प्रकाशन तथा मुद्रण में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सहयोग प्रदान किया है, धन्यवाद तथा प्रशंसा के पात्र हैं । नरेशकुमार सेठी प्रबन्ध-सम्पादक

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