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कविमनीषी योगीन्दु का काव्यशास्त्रीय मूल्यांकन
-डॉ. महेन्द्रसागर प्रचण्डिया
हिन्दी से पूर्व अपभ्रंश की काव्यधारा अनेक शताब्दियों तक प्रवहमान रही । इसमें महाकाव्य, खण्डकाव्य, मुक्तककाव्य और अनेक काव्यरूपों में निर्बाध काव्य रचा जाता रहा है । प्रारम्भ में जिनवाणी पर प्राधत अपभ्रंश काव्य रचा गया किन्तु इसके उत्तरार्द्ध में बौद्धधर्मजन्य सिद्ध और नाथ सम्प्रदायी स्वतन्त्र पद साहित्य, गीत तथा दोहे प्रभूत परिमाण में रचे गये इसके अतिरिक्त महाकवि विद्यापति की कीर्तिलता और अब्दुल रहमान के सन्देशरासक जैसे प्रसिद्ध काव्यग्रन्थों में अपभ्रंश साहित्य के अभिदर्शन किए जा सकते हैं। .
।। सा.. .. . - महाकवि स्वयंभू, पुष्पदन्त, धवल, धनपाल, नयनन्दी तथा कनकामर की परम्परा में कविमनीषी योगीन्दु का नाम साहित्य-जगत् में समादृत है। आपने संस्कृत, प्राकृत तथा अपभ्रंश भाषाओं में अनेक उत्तम काव्यकृतियों का सृजन किया है तथापि अपभ्रंश भाषा में रचित परमात्मप्रकाश और योगसार प्रसिद्ध काव्यकृतियाँ हैं। यहाँ इन्हीं दोनों काव्यों पर प्राधृत महाकवि योगीन्दु का काव्यशास्त्रीयपरक मूल्य अंकन करना हमारा मूल अभिप्रेत रहा है।
- काव्यशास्त्र एक पारिभाषिक शब्दसमूह है जिसका तात्पर्य है-काव्य के मूलभूत सिद्धान्तों तथा उसके विभिन्न भेदोपभेदों के रचना एवं मूल्यांकन सम्बन्धी नियमों का उपस्थापन, निरूपण, विवेचन तथा विश्लेषण करनेवाला शास्त्र । भारतीय प्राचार्यों ने शास्त्र को