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जैनविद्या
(ऋकारान्त शब्दों में ) ऋत् ऋ के स्थान पर उत् उ विकल्प से हो जाता है । ( किन्तु ) सिम और प्रौ परे होने पर नहीं ( होता है ) ।
ऋकारान्त शब्दों में सि ( प्रथमा एकवचन के प्रत्यय), श्रम् ( द्वितीया एकवचन के प्रत्यय) और (प्रथमा - द्वितीया द्विवचन के प्रत्ययों) को छोड़कर शेष सभी प्रत्ययों के योग में ॠ के स्थान पर विकल्प से उ हो जाता है ।
कर्तृ (पु.) – ( कर्तृ + जस्, शस्, टा आदि) = कत्तु पितृ ( पु . ) - (पितृ + जस्, शस् टा आदि ) = पितु
उकारान्त पुल्लिंग शब्दों की तरह कत्तु और पिउ के एकवचन, द्विवचन को छोड़कर) चलेंगे ।
37. श्रारः स्यादौ
38. श्रा श्ररा मातुः
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प्रारः स्यादौ [ ( स ) + (आदौ ) ]
आर: (आर) 1 / 1 [ (सि) - (आदि ) 7 / 1 ]
विशेषणात्मक (ऋकारान्त शब्दों में) सि आदि परे होने पर ॠ के स्थान पर प्रार
(होता है) ।
विशेषणात्मक ऋकारान्त शब्दों में सि (प्रथमा एकवचन के प्रत्यय) आदि परे होने पर ऋ के स्थान पर श्रार होता है ।
कर्तृ (वि) - ( कर्तृ + सि, ग्रम्, जस् श्रादि ) = कर्तार → कत्तार
दातू (वि) - ( दातृ + सि, ग्रम्, जस् आदि) = दातार दाचार इनके रूप प्रकारान्त पु. नपु. की तरह चलेंगे ।
मातृ
इनके रूप आकारान्त की तरह चलेंगे ।
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आ (आ) 1 / 1 अरा (अरा) 1 / 1 मातुः (मातृ) 6 / 1
मातृ के (ऋ के स्थान पर ) ( सभी प्रत्ययों के योग में) आ और अरा ( होते हैं)
= माना, मारा
39. नाम्न्यर:
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नान्यर:, [ ( नाम्नि ) + (अरः ) ]
नाम्नि ( नामन् ) 7 / 1 अर: ( अर) 1 / 1
पिउ
रूप (प्रथमा और द्वितीया
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पितृ ( पु . ) - ( पितृ + सि आदि ) = पितर पिअर
इनके रूप अकारान्त पुल्लिंग की तरह चलेंगे ।
( ऋकारान्त) संज्ञा ( शब्दों) में श्रर (होता है ) |
ऋकारान्त संज्ञा शब्दों में सि आदि परे होने पर ॠ के स्थान पर अर होता है ।