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जैनविद्या
प. बहूअ, बहूआ, बहूइ, बहूए (26) बहूण (4, 10, 50) बहूणं (60) स. बहूप, बहूआ, बहूइ, वहूए (26) बहूसु (14) बहूV (60) सं. हे बहु (34)
हे बहूउ, हे बहूो, हे बहू (59) ऋकारान्त पुल्लिग (पितृ- पिपर) (39) पिनर के रूप अकारान्त पुल्लिग देव की तरह चलेंगे । सं, हे पिअरं (32)
ऋकारान्त पुल्लिग विशेषण (कर्तृ→ कत्तार) (37) कतार के रूप अकारान्त पुल्लिग देव की तरह चलेंगे।
ऋकारान्त नपुंसकलिंग विशेषण (कर्तृ→ कत्तार) (37) कत्तार के रूप अकारान्त नपुंसकलिंग कमल की तरह चलेंगे।
ऋकारान्त (मातृ→ माना और माअरा) (38) माना और मारा के रूप आकारान्त कहा की तरह चलेंगे।
आत्मन्- प्रात्म→ अप्प या अत्त (48) एकवचन
बहुवचन प्र. अप्पा (41)
अप्पा, अप्पाणो (42) द्वि. अप्पं (50, 3) .
अप्पा, अप्पाणो (42) त. अप्पणा (43)
अप्पेहि, अप्पेहिँ अप्पेहिं (50, 5) अप्पाणिया, अप्पणइना (49) च. अप्पणो (42, 57)
अप्पाण, अप्पाणं (50, 4, 60, 57) पं. अप्पाणो (42)
अप्पतो, अप्पागो, अप्पाउ, अप्पाहि, अप्पाहिन्तो अप्पासुन्तो, अप्पेहि, अप्पेहिन्तो, अप्पेसुन्तो
(50, 10, 11, 13) ष. अप्पणो (42)
अप्पाण, अप्पाणं (50, 4, 60) स. अप्पम्मि, अप्पे (50, 9)
अप्पेसु, अप्पेसु (50, 13) सं. हे अप्पा, हे अप्प (59)
हे अप्पा, हे अप्पाणो (50, 59) नोट : (i) अप्प के रूप देव की तरह भी चलेंगे। (ii) अप्पाण या प्रत्ताण (48) के रूप भी देव की तरह चलेंगे।
राजन्→ राज→ राम→ राय (41) एकवचन
बहुवचन प्र. राया (41)
राया, रायाणो, राइणो (42)