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जैनविद्या
अप्प सेपरेटा (तृतीया एकवचन का प्रत्यय) के स्थान पर णिचा और इमा विकल्प से हो जाते हैं ।
अप्प - ( अप्प + टा) = ( अप्प + णिश्रा, इश्रा) = श्रप्परिणश्रा, श्रप्पणइश्रा
50. शेषेऽदन्तवत्
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शेषेऽदन्तवत् [ ( शेषे ) + ( प्रदन्तवत् ) ]
शेषे ( शेष) 7 / 1 प्रदन्तवत् ( अ ) = अकारान्त के समान ।
शेष में अकारान्त के समान ( रूप चलेंगे ) ।
जो रूप बचे हुए हैं उन्हें अकारान्त के समान समझना चाहिए ।
जैसे ह्रस्व इकारान्त - उकारान्त पुल्लिंग, स्त्रीलिंग एवं नपुंसकलिंग शब्दों में द्वितीया एकवचन बनाने का सूत्र नहीं दिया गया है । ' रूप अकारान्त की तरह बना लेने
चाहिए ।
हरि (पु.) - हरि
साहु (पु.) साहु
वारि ( नपुं. ) वारि
( द्वितीया एकवचन )
महु ( नपुं. ) - महुं
( द्वितीया एकवचन ) ( द्वितीया एकवचन )
मई (स्त्री.) – मई
धेणु (स्त्री) — घेणुं
(द्वितीया एकवचन)
इसी प्रकार दूसरे शब्द भी समझे जाने चाहिए ।
51. न दीर्घो णो
( द्वितीया एकवचन )
( द्वितीया एकवचन )
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न दीर्घा णो [ ( दीर्घः) + ( णो ) ]
न ( अ ) = नहीं दीर्घः (दीर्घ) 1 / 1 जो ( णो ) 1/1
52. उसे र्लुक्
( तृतीया एकवचन )
( प्राकृत में ) ( यदि ) णो प्रत्यय लगता है, (तो) ( पूर्व स्वर ) दीर्घं नहीं (होता है) ।
इस सूत्र का प्रयोग 3/22 और 3/23 के लिए है ।
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ङसे र्लुक् [(ङसे: + (लुक् ) ]
से: ( ङसि ) 6 / 1 ( लुक् ) 1 / 1
( प्राकृत में ) ( शेष में ) ( आकारान्त, इकारान्त - उकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों में) (इकारान्त – उकारान्त पुल्लिंग - नपुंसकलिंग शब्दों में ) ङसि के स्थान पर लोप प्रत्यय नहीं होता है ।