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________________ 102 जैनविद्या अप्प सेपरेटा (तृतीया एकवचन का प्रत्यय) के स्थान पर णिचा और इमा विकल्प से हो जाते हैं । अप्प - ( अप्प + टा) = ( अप्प + णिश्रा, इश्रा) = श्रप्परिणश्रा, श्रप्पणइश्रा 50. शेषेऽदन्तवत् 3/124 शेषेऽदन्तवत् [ ( शेषे ) + ( प्रदन्तवत् ) ] शेषे ( शेष) 7 / 1 प्रदन्तवत् ( अ ) = अकारान्त के समान । शेष में अकारान्त के समान ( रूप चलेंगे ) । जो रूप बचे हुए हैं उन्हें अकारान्त के समान समझना चाहिए । जैसे ह्रस्व इकारान्त - उकारान्त पुल्लिंग, स्त्रीलिंग एवं नपुंसकलिंग शब्दों में द्वितीया एकवचन बनाने का सूत्र नहीं दिया गया है । ' रूप अकारान्त की तरह बना लेने चाहिए । हरि (पु.) - हरि साहु (पु.) साहु वारि ( नपुं. ) वारि ( द्वितीया एकवचन ) महु ( नपुं. ) - महुं ( द्वितीया एकवचन ) ( द्वितीया एकवचन ) मई (स्त्री.) – मई धेणु (स्त्री) — घेणुं (द्वितीया एकवचन) इसी प्रकार दूसरे शब्द भी समझे जाने चाहिए । 51. न दीर्घो णो ( द्वितीया एकवचन ) ( द्वितीया एकवचन ) 3/125 न दीर्घा णो [ ( दीर्घः) + ( णो ) ] न ( अ ) = नहीं दीर्घः (दीर्घ) 1 / 1 जो ( णो ) 1/1 52. उसे र्लुक् ( तृतीया एकवचन ) ( प्राकृत में ) ( यदि ) णो प्रत्यय लगता है, (तो) ( पूर्व स्वर ) दीर्घं नहीं (होता है) । इस सूत्र का प्रयोग 3/22 और 3/23 के लिए है । 3/126 ङसे र्लुक् [(ङसे: + (लुक् ) ] से: ( ङसि ) 6 / 1 ( लुक् ) 1 / 1 ( प्राकृत में ) ( शेष में ) ( आकारान्त, इकारान्त - उकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों में) (इकारान्त – उकारान्त पुल्लिंग - नपुंसकलिंग शब्दों में ) ङसि के स्थान पर लोप प्रत्यय नहीं होता है ।
SR No.524758
Book TitleJain Vidya 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1988
Total Pages132
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size12 MB
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