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जनविद्या
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इकारान्त नपुंसकलिंग (वारि) प्र. वारि (22)
वारी', वारीइं, वारीणि (23) द्वि. वारिं (3, 50)
वारी', वारीइं, वारीणि (23) सं. हे वारि (29)
हे वारी', हे वारीइं, हे वारीणि (59) शेष पुल्लिग के समान ऋकारान्त पुल्लिग (पितृ-पितु-→ पिउ) (36) एकवचन
बहुवचन प्र. पिया (40)
पिपउ, पिप्रो, पिअवो, पिउणो, पिऊ (साह
के समान) द्वि. x
पिउणो, पिऊं सं. हे पिउ, हे पिअरं (31, 32) हे पिअउ, पिअनो, पिनवो, हे पिउणो, हे पिऊ
शेष रूप साहु के समान (उकारान्त पुल्लिग के समान)
उकारान्त नपुंसकलिंग (महु) एकवचन
बहुवचन प्र. महुं (22)
महूई, महूई, महूणि (23) द्वि. महुं (3, 30)
महू', महूई, महू णि (23) सं. हे महु (29)
हे महू', हे महूई, हे महूणि (59)
शेष पुल्लिग के समान ऋकारान्त पुल्लिग विशेषण (कर्तृ→ कर्तु→ कत्तु) (36) एकवचन
बहुवचन प्र. कत्ता (40) द्वि. x सं. 'हे कत्त, (31)
शेष सभी रूप साहु के समान होंगे (उकारान्त पुल्लिग के समान) ऋकारान्त नपुंसकलिंग विशेषण
(कर्तृ- कर्तु→ कत्तु) एकवचन
बहुवचन प्र. कत्ता (40) द्वि. x सं. हे कत्त
शेष सभी रूप महु के समान होंगे
(उकारान्त नपुंसकलिंग के समान) देखें-प्राकृत मार्गोपदेशिका, पं. बेचरदास जी, पृष्ठ 279