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जैनविद्या
जैनविद्या
34. ईदूतोहूं स्वः 3/42
ईदूतोह स्व: [(ईत्) + (ऊतोः) + (हृस्वः)] [(ईत्)-(ऊत्) 5/2] हृस्व: (हृस्व) 1/1 (प्राकृत में) (आमन्त्रण में) दीर्घ इकारान्त और दीर्घ उकारान्त से परे सि होने पर उसका हृस्व हो जाता है (और सि का लोप भी हो जाता है)
आमन्त्रण में दीर्घ इकारान्त-उकारान्त पुल्लिग-स्त्रीलिंग शब्दों में सि (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर उसका हृस्व हो जाता है और सि का लोप हो जाता है । गामणी (पु.)-(हे गामणी+सि) = (हे गामणि+०) = हे गामणि
(संबोधन एकवचन) सयंभू (पु.)--(हे सयंभू + सि) = (हे सयंभु +०) = हे सयंभु (संबोधन एकवचन) लच्छी (स्त्री.)-(हे लच्छी+सि) = (हे लच्छि+ .) = हे लच्छि
' (संबोधन एकवचन) बहू (स्त्री.)-(हे बहू + सि) = (हे बहु+०) = हे बहु (संबोधन एकवचन)
35. क्विपः
3/43
-विवपः (क्विप्) 5/1 (प्राकृत में) दीर्घ इकारान्त और दीर्घ उकारान्त पुल्लिग शब्दों से परे प्रत्यय जुड़ने पर (णा, णो) वे ह्रस्व (हो जाते हैं)। क्विप् दीर्घ इकारान्त और दीर्घ उकारान्त पुल्लिग शब्दों से परे प्रत्यय जुड़ने पर (णा, णो) वे ह्रस्व (हो जाते हैं)। गामणी (पु)- (गामणी+णा) = (गामणि + णा) = गामणिणा(3/24)
(तृतीया एकवचन) सयंभू (पु)-(सयभू + णा) = (सयंभु+णा) = सयंभुणा (3/24)
(तृतीया एकवचन) इसी प्रकार गामणिणो, सयंभूणो होगा । 36. ऋतामुदस्यमौसु वा 3/44
ऋतामुदस्यमौसु वा [(ऋताम्) + (उत्) + (अ) + (सि) + (अम्) + (ौसु)] वा (अ) ऋताम् (ऋत्) 6/3 उत् (उत्) 1/14 (अ) = नहीं [(सि)-(अम्)-(ौ) 7/3] वा (अ) = विकल्प से