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जनविद्या
अकारान्त, इकारान्त और उकारान्त नपुंसकलिंग शब्दों में संबोधन से परे सि (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) होने पर म् का अभाव हो जाता है । सि* का लोप भी।
कमल (नपुं.)-(हे कमल+सि) = (हे कमल+०) = हे कमल (संबोधन एकवचन) वारि (नपुं.)-(हे वारि+सि) = (हे वारि+०) = हे वारि (संबोधन एकवचन) महु (नपुं.)-(हे महु+सि) = (हे महु+०) = हे महु (संबोधन एकवचन) *संबोधन में प्रथमा का एकवचन संबुद्धि संज्ञक होता है । यहाँ 'सि' संबुद्धि संज्ञक है अतः इसका लोप होता है (लघु सिद्धान्त कौमुदी 132)
30. डो दी? वा 3/38
डो दीर्घो वा [(दीर्घः) + (वा)] डो (डो) 1/1 दीर्घः (दीर्घ) 1/1 वा (अ) = विकल्प से (प्राकृत में) (आमन्त्रण से परे सि होने पर) डो→ प्रो और दीर्घ विकल्प से (होता है)। (i) आमन्त्रण से परे सि (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) होने पर प्रकारान्त
पुल्लिग शब्दों में प्रो और दीर्घ विकल्प से होता है और सि का लोप भी देव (पु.)-(हे देव+सि) = (हे देवो+०) = हे देवो (संबोधन एकवचन)
विकल्प होने के कारण मूल भी होगा (हे देव+ सि) = (हे देव+०) = हे देव (संबोधन एकवचन)
(हे देव +सि) = (हे देवा+०) = हे देवा (संबोधन एकवचन) (ii) आमन्त्रण से परे सि (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) होने पर ह्रस्व इकारान्त
उकारान्त पुल्लिग-स्त्रीलिंग शब्दों में (3/15) दीर्घ विकल्प से होता है। (सि का लोप भी हो जाता है) हरि (पु.)-(हे हरि+सि) = (हे हरी+०) = हे हरी (संबोधन एकवचन)
विकल्प होने के कारण मूल भी होगा ।
(हे हरि+सि) = (हे हरि+०) = हे हरि (संबोधन एकवचन) साहु (पु.)-(हे साहु + सि) = (हे साहू+) = हे साहू (संबोधन एकवचन)
(हे साहु +सि) = (हे साहु+०) = हे साहु (संबोधन एकवचन) मइ (स्त्री.)-(हे मइ+सि) = (हे मई +०) = हे मई (संवोधन एकवचन)
(हे मइ+सि) = (हे मइ+०) = हे मइ (संबोधन एकवचन) घेणु (स्त्री.) इसी प्रकार हे घेणू, हे घेणु
(संबोधन एकवचन)