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जनविद्या
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31. ऋतोऽद्वा
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ऋतोऽद्वा [ (ऋतः) + (अत्) + (वा)] ऋतः (ऋत्) 6/1 प्रत् (अत्) 1/1 वा (अ) = विकल्प से (प्राकृत में) (आमन्त्रण से परे) (सि होने पर) ऋत्→ ऋ के स्थान पर प्रत्→म विकल्प से हो जाता है।
आमन्त्रण से परे सि, (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) होने पर ऋत्→ऋ के स्थान पर प्र हो जाता है और सि का लोप हो जाता है। पित (पु.)-(हे पितृ+सि) = (हे पिन+सि) = (हे पिन+०) = हे पिन
(संबोधन एकवचन) बात (वि.)-(हे दातृ +सि) = (हे दान+सि) = (हे दाम+०) = हे दान
(संबोधन एकवचन)
32. नामन्यरं वा
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नामन्यरं वा [(नाम्नि) 1(3/2)] वा (अ) नाम्नि (नामन्) 7/1 परं (अरं) 1/1 वा (अ) = विकल्प से (प्राकृत में) (आमन्त्रण से परे) (सि होने पर) (ऋकारान्त) संज्ञा में प्ररं विकल्प से (हो जाता है)। आमन्त्रण से परे सि (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) होने पर ऋकारान्त संज्ञा शब्दों में ऋ के स्थान पर प्ररं हो जाता है और सि का लोप हो जाता है । पितृ (पु.)-(हे पितृ + सि) = (हे पिअरं+सि)=(हे पिअरं+०) = हे पिनरं
(संबोधन एकवचन)
33. वाप ए
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वाप ए [(वा) + (मापः) + (ए)] वा (अ) = विकल्प से प्रापः (प्राप्) 5/1 ए (ए) 1/1 आमन्त्रण में प्राकारान्त से परे सि होने पर (उसका) ए विकल्प से होता है। आमन्त्रण में प्राकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों से परे 'सि' (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) होने पर उसका ए विकल्प से होता है और सि का लोप भी। कहा (स्त्री)-(हे कहा+सि) = (हे कहे+०) = हे कहे (संबोधन एकवचन)
(विकल्प होने से मूल भी होगा) (हे कहा+सि) = (हे कहा+०)हे कहा (संबोधन एकवचन)