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जैनविद्या
(प्राकृत में) टा के स्थान पर ण होने पर तथा शस् परे होने पर अन्त्य स्वर एत् ए (होता है )। अकारान्त पुल्लिग शब्दों में टा (तृतीया एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर ण होने पर तथा शस् (द्वितीया बहुवचन के प्रत्यय) परे होने पर अन्त्य स्वर ए होता है । देव (पु.)- (देव + टा) = (देव+ ण) = (देवे+ण) = देवेण (तृतीया एकवचन
(देव+ शस्) शस् = 0 3/4 (देव+ शस्) = (देव+०) (देवे+०) = देवे (द्वितीया बहुवचन)
13. भिस्भ्यस्सुपि 3/15
भिस्भ्यस्सुपि [ (भिस्) + (भ्यस्) + (सुपि)] [(मिस्)-(भ्यस्)-सुपि (सुप्)7,1] (प्राकृत में) भिस्, भ्यस् और सुप् परे होने पर ए (हो जाता है)। अकारान्त पुल्लिग शब्दों में भिस् (तृतीया बहुवचन के प्रत्यय) भ्यस् (पंचमी बहुवचन के प्रत्यय (तथा सुप् (सप्तमी बहुवचन के प्रत्यय) परे होने पर ए हो जाता है । देव (पु)-(देव+भिस्), भिस् = हि, हिँ, हिं 3/7
(देव+भिस्) = (देव+हि, हिँ, हिं) = (देवे+हि, हिं, हिं)
= देवेहि, देवेहि, देवेहिं (तृतीया बहुवचन) (देव + म्यस्), भ्यस् = हि, हिन्तो, सुन्तो 3/13_ (देव + भ्यस्) = (देव+हि, हिन्तो, सुन्तो) = (देवे + हि, हिन्तो, सुन्तो)
___= देवेहि, देवेहिन्तो, देवेसुन्तो (पंचमी बहुवचन) (देव+ सुप्), सुप्→ सु
(देव+ सुप्) = (देव + सु) = (देवे+सु) = देवेसु (सप्तमी बहुवचन) 14. इदुतो दीर्घः 3/16
इदुतो दीर्घः [(इत्) + (उतः)] [(इत)-(उत्) 6/1] दीर्घः (दीर्घ) 1/1 (प्राकृत में) (पु.. स्त्री, नपु । (शब्दों में) (भिस्, भ्यस् और सुप् परे होने पर) ह्रस्व इकारान्त और ह्रस्व उकारान्त के स्थान पर दीर्घ (हो जाता है)। ह्रस्व इकारान्त और ह्रस्व उकारान्त पुल्लिग, नपुंसकलिंग और स्त्रीलिंग शब्दों में भिस् (तृतीया बहुवचन का प्रत्यय) भ्यस् (पंचमी बहुवचन का प्रत्यय) और सुप् (सप्तमी बहुवचन का प्रत्यय) परे होने पर हस्व का दीर्घ हो जाता है। (और दीर्घ दीर्घ ही रहता है)। हरि (पु.)-(हरि+मिस्), भिस् = हि, हिं, हिं (3/7),(3/124) (हरि+भिस्) = (हरि+हि, हिं, हिं)
= हरीहि, हरीहि, हरीहिं (तृतीया बहुवचन)