Book Title: Jain Vidya 09
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 86
________________ जैनविद्या 1. योगसार, 3 । परमात्मप्रकाश, 12-13 । 2. परमात्मप्रकाश, 2.101 । योगसार, 58 । 3. अभिधान चिन्तामणि कोश, 741-2 । 4. रहस्यमन्तराष, धवला, 1.1.1.1.44 । 5. कबीर ग्रंथावली, पृ. 178 । 6. कबीर साखी संग्रह, पृ. 61 । 7. कबीर ग्रंथावली, पृ. 26 । 8. वही, पृ. 38 । 9. माया छाया एक सी विरला जाने कोय । आसा के पीछे फिरे सनमुख भाग सोय ।। संत वाणी संग्रह, भाग 1, पृ. 57 । 10. कबीर-डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी, पद्य 134, पृ. 311। अन्यत्र-'अवधू ऐसा ज्ञान विचारी', कहकर माया के स्वरूप को स्पष्ट किया है, कबीर ग्रंथावली, पृ. 427, पद 231, तुलनार्थ देखिए आनंदघन बहोत्तरी, पद, 98 । 11. मनकरहारास, भगवतीदास, 1 । पाहड दोहा 92, 111, 155। 12. कबीर ग्रंथावली सटीक, पृ. 147। 13. कबीरवाणी, पृ. 67, कबीर ग्रंथावली, पृ. 146 । 14. काहै रे मन दह दिसिंधावै, विषिया संगि संतोष न पावै । जहाँ-जहाँ कलपे तहाँ तहाँ बंधनो, रतन को थाल कियो ते रंधना ।। कबीर ग्रंथावली, पद 87, पृ. 343. 15. क्या है तेरे न्हाई धोई, प्रातमराम न चीन्हा सोई । क्या घर ऊपर मंजन कीय, भीतरी मैल अपारा । राम नाम बिन नरक न छटै, जो धोबै सौ बारा । ज्यूं दादुर सुरसरि जल भीतरि हरि बिन मुकति न होई ॥ 158 ॥ -कबीर ग्रंथावली पृ. 322. 16. कबीर ग्रंथावली, पृ. 221 । 17. पाहुडदोहा, 159। 18. माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर। कर का मनका छांडिदे, मन का मनका फेर ।। कबीर ग्रंथावली, 45. 19. ऐसा कोई नां मिल, सब विधि देइ बताइ । सुनि मडंल में पुरिषएक, ताकि रहै ल्यो लाइ ॥7॥ कबीर ग्रंथावली सटीक, पृ. 242-244. 20. गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय । . बलिहारी गुरु आपकी, जिन्ह गोविंद दियो बताय ॥ संतवाणी संग्रह, भाग 1, पृ. 2. 21. कबीर ग्रंथावली, पृ. 1 । 22. वही, पृ. 1-3 ।

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