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जनविद्या
बुधजन, द्यानतराय, दौलतराम आदि जैनकवियों का नाम अग्रगण्य है । संत कवियों में नामदेव, कबीर, नानक, दादू, मलूकदास, सुन्दरदास, चरणदास, रामचरण आदि साधकों का विशेष नामोल्लेख किया जा सकता है जिन्होंने योगीन्दु के स्वर को प्रात्मसात किया । अत: संत साहित्य के विकास में योगीन्दु के योगदान का मूल्यांकन किया जाना अत्यावश्यक है।
1. परमात्मप्रकाश, प्रस्तावना, पृ. 63-67 । 2. कालु लहेविणु जोइया जिमु जिमु मोहु गलेइ । ___तिमु तिमु दंसणु लहइ जिउ णियमें अप्पु मुणेइ ।1.85। 3. सूत्र 4.389 के 'संता भोग जु परिहरइ' की तुलना परमात्मप्रकाश के 2.139 वें दोहे
'संता विसय जु परिहरई' से कीजिए । इसी तरह हेम. 4.365, 4.427 पर उद्धृत
दोहों को परमात्मप्रकाश के क्रमश: 2.147 और 2.140 दोहों में देखा जा सकता है। 4. संतकाव्य भूमिका, पृ. 6 । 5. परमात्मप्रकाश, 2.80-81। 6. अंगुत्तरनिकाय (दो.), 2.38 सुत्तनिपात, 144, उपसंतकिलेस, मिलिन्दपंहो, 232 । 7. कल्याण, संत अंक, प्रथम खण्ड, श्रावण 1994. पृ. 21 । 8. संत काव्य, पृ. 139 । 9. कबीर साखी संग्रह, पृ. 61 । 10. संतवाणी संग्रह, सागर, पृ. 49 । 11. सूर सागर, 1110। 12. विनय पत्रिका, पद 188 । 13. हिन्दी पद संग्रह, पृ. 55 । 14. वही, पृ. 130। 15. वही, पृ. 152। 16. परमात्मप्रकाश, भूमिका पृ. 33, सम्पादक-डॉ. ए. एन. उपाध्ये ।
पाल डॉयसन-दी फिलासफी प्रॉफ द उपनिषदाज, छंदोग्यपनिषद 308.7-12 । .. . 17. बौद्ध संस्कृति का इतिहास, डॉ० भागचन्द्र जैन, तृतीय अध्याय । 18. योगसार 8-10, परमात्मप्रकाश 2.79 । 19. योगसार, 6-9, परमात्मप्रकाश 2.15 से 25 । 20. प. प्र. 1.26 इससे परमात्मप्रकाश के ही एक अन्य दोहे 1.122 का मिलान कीजिए
णिय-मणि णिम्मलि णाणियहं णिवसइ देउ अणाइ । हंसा सरवरि लीणु जिम महु पहउ पडिहाइ ।।