________________
अध्यात्म-साधक योगीन्दु
और
कबीर
- डॉ. पुष्पलता जैन
योगीन्दु एक श्रात्मसाधक योगी थे जिन्होंने अपनी सारी रचनाओं का केन्द्र बिन्दु श्रात्मा को बनाया और उसी की साधना में सारा जीवन लगा डाला। वे इतिहास के मध्यकालीन प्राध्यात्मिक संत थे जिनके काल में साधना का पग दर्शन की ओर बढ़ रहा था । उनके पूर्ववर्ती प्राचार्य कुंदकुंद इस श्राध्यात्मिक आन्दोलन के मूल प्रवर्तक थे परन्तु उनके समय अांदोलन ने शायद अधिक जोर नहीं पकड़ा। उनके उत्तरवर्ती आचार्य पूज्यपाद, समन्तभद्र, सिद्धसेन आदि ने इस प्रांदोलन की मूलधारा को दर्शन की ओर मोड़ दिया । योगीन्दु ने इस दर्शन-युग में अध्यात्म के प्रांदोलन को पुनर्जीवित किया और दर्शन के नीरस साहित्य - वृक्ष को श्रात्मसाधना की सरसता से हरा-भरा करने का प्रयास किया । आत्मा का प्रवेश तर्कवितर्क के क्षेत्र में तो हो गया पर उसकी साधना का जो पुष्प सूखने-सा लगा था, योगीन्दु ने उसे नया जीवन दान दिया ।
योगीन्दु के निर्विवाद रूप से दो ग्रन्थ माने जाते हैं- 1. परमात्मप्रकाश और 2. योगसार । इन ग्रन्थों पर प्राचार्य कुन्दकुन्द का सर्वाधिक प्रभाव परिलक्षित होता है । इसीलिए योगीन्दु की अध्यात्मिक परम्परा का प्रारंभिक सूत्र यदि कुन्दकुन्द के ग्रन्थों में देखा