________________
जनविद्या
जो परमप्पउ परम-पउ, हरि-हरु-कभु वि युद्ध ।
परम-पयासु भणंति मुरिण, सो जिण-देह विसुद्ध। प.प्र. 2.200 अर्थात् जिस परमात्मा को मुनि परमपद, हरि, महादेव, ब्रह्मा, बुद्ध और परम प्रकाश नाम से कहते हैं वह रागादि रहित शुद्ध जिनदेव ही हैं, ये सब नाम उसी के हैं।
सो सिउ-संकर विष्णु सो, सो रूद वि सो बुद्ध ।
सो जिणु ईसर बंभु सो, सो प्रणंतु सो सिद्ध। योगसार, 105 अर्थात् वही शिव है, वही शंकर हे, वही विष्णु है, वही रुद्र है, वही बुद्ध है, वही जिन है, वही ईश्वर है, वही ब्रह्म है, वही अनन्त है, और सिद्ध भी उसे ही कहना चाहिए ।
प्रतिभा और वैदुष्य
अपभ्रंश कवयिता जोइंदु शांत, उदार एवं विशुद्ध अध्यात्मवेत्ता थे। आप जैन परम्परा में दिगम्बर आम्नाय के मान्य आचार्य थे और थे उच्चकोटि के आत्मिक रहस्यवादी साधक । रूढ़िविरोधी नवोन्मेषशालिनी शक्तियों की संघर्षात्मक धार्मिक अभिव्यक्ति के कविश्री प्रकृष्ट निदर्शन थे। आपके काव्य में आत्मानुभूति का रस लहराता है। पारिभाषिक शब्दों की अध्यात्मपरक अर्थव्यंजना कविकाव्य की प्रमुख उपादेय विशेषता है।
___कविश्री जोइन्दु इतने मुक्त मन थे कि प्रकाश जहाँ से भी मिले उसे स्वीकार करने के पक्ष में थे। कविश्री ने ज्ञानमात्र को सर्वोपरि मानकर उस परमात्म की वंदना सबसे पहले की है जो नित्य निरंजन ज्ञानमय है। काव्यकार जोइंदु ने जैनधर्म की शास्त्रीय रूढ़ियों और बाह्याडंबरों के विरुद्ध लोकसामान्य के लिए सरल और उदार ढंग से जीवनमुक्ति का संदेश दिया । उद्देश्य में व्यापकता और विचारों में सहिष्णुता होने के कारण जोइन्दु की पारिभाषिक पदावली और काव्यशैली सहज, सामान्य और लोकप्रचलित हो गई। प्रो. रानाडे के शब्दों में-'जोइन्दु एक जैन गूढ़वादी हैं किन्तु उनकी विशालदृष्टि ने उनके ग्रंथ में एक विशालता ला दी है और इसलिए उनके अधिकांश वर्णन साम्प्रदायिकता से अलिप्त हैं। उनमें बौद्धिक सहनशीलता भी कम नहीं है ।'15 मूल्यांकन
वस्तुतः मुनिश्री जोइन्दु अपभ्रंश साहित्य के महान् अध्यात्मवादी कविकोविद हैं, जिन्होंने क्रांतिकारी विचारों के साथ-साथ मात्मिक रहस्यवाद की प्रतिष्ठा कर मोक्षमार्ग की उपादेयता सिद्ध की है । कविश्री जोइन्दु की वाणी में अनुभूति का वेग एवं तत्त्वज्ञान की गम्भीरता समाविष्ट है । कविश्री की प्रभावना अपभ्रंश कवयिताओं के साथ-साथ हिन्दी के संतकवियों पर भी है। कबीर की क्रांतिकारी विचारधारा का मूलस्रोत कविश्री जोइन्दु का काव्य है । अपभ्रंश वाङ्मय के रहस्यवाद-निरूपण में मुनिश्री जोइन्दु का स्थान सर्वोपरि है तथा भावधारा, विषय, छन्द, शैली की दृष्टि से भी कविश्री जोइन्दु का साहित्यिक अवदान