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जनविद्या
महनीय है। कविश्री जोइन्दु का व्यक्तित्व प्रौदात्य-जल से आपूर्ण मंदाकिनी है और उनका कृतित्व उपादेयी ज्ञान की गोमती है।
1. अपभ्रंश काव्यत्रयी, भूमिका, पृष्ठ 102-103 । 2. मध्यकालीन धर्मसाधना, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, साहित्यभवन लिमिटेड,
इलाहाबाद, प्रथम संस्करण 1952, पृष्ठ 44 । 3. अपभ्रंश पाठावली, टिप्पणी, पृष्ठ 77, 79 । 4. राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रंथों की खोज, तृतीय भाग की प्रस्तावना पृष्ठ 3 । 5. हिन्दी साहित्य का बृहत् इतिहास, भाग 1, पृष्ठ 346 । 6. हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, पृष्ठ 54 । 7. परमात्मप्रकाश की भूमिका, पृष्ठ 57 । 8. अपभ्रंश साहित्य, पृष्ठ 268 । 9. अपभ्रंश कविश्री जोइन्दु का साहित्यिक अवदान, डॉ. आदित्य प्रचण्डिया दीति, अनेकान्त,
अप्रेल-जून 1986, वर्ष 39, किरण 2, पृष्ठ 2 । 10. जैन शोध और समीक्षा, डॉ. प्रेमसागर जैन, पृष्ठ 59 । 11. गूढ अध्यात्म को व्यक्त करने की दो शैलियां हैं, उपनिषद् में इन्हें अपरा और परा ____ विद्या कहते हैं, बौद्धों में परमार्थ और व्यवहार सत्य कहते हैं और जैनों में निश्चय
और व्यवहार नय की कल्पना है । 12. अपभ्रंश और हिन्दी जैन रहस्यवाद, डॉ. वासुदेवसिंह, पृष्ठ 44-45 । 13. अपभ्रंश साहित्य, हरिवंश कोछड़, पृष्ठ 270 । 14. श्री ब्रह्मदेव ईसा की तेरहवीं शती और पंडित दौलतराम अठारहवीं शती में हुए। 15. भारतीय दर्शन का इतिहास, जिल्द 7, वेणकर और रानाडे, महाराष्ट्र का प्राध्यात्मिक
गूढ़वाद, भूमिका, पृष्ठ 2।