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परमात्मप्रकाश एक विश्लेषण ___-डॉ. गदाधर सिंह
जैन-अपभ्रंश साहित्य में दो प्रकार की रचनाएँ प्राप्त होती हैं—प्रबन्ध एवं मुक्तक । प्रबन्धात्मक साहित्य में एक कोटि उन रचनाओं की है जिन्हें पुराण नामान्त या चरित्र नामांत कहा जा सकता है। पुष्पदन्त के 'महापुराण' या स्वयम्भू के 'पउमचरिउ' को इस वर्ग में रखा जा सकता है । प्रबन्धात्मक साहित्य में कुछ ऐसी भी कृतियां उपलब्ध हैं जिनका महत्त्व साहित्य की दृष्टि से अत्यल्प है। इनकी रचना किसी व्रत, अनुष्ठान या तीर्थ के महात्म्य को लेकर हुई है । मुक्तक काव्य-धारा के अन्तर्गत रहस्यवादी धारा और उपदेशात्मक धारा-ये दो धाराएँ मिलती हैं। योगीन्दु, मुनि रामसिंह, सुप्रभाचार्य, महानंदि, महचंद आदि रहस्यवादी धारा के महत्त्वपूर्ण कवि हैं । उपदेशात्मक धारा के अन्तर्गत देवसेन, जिनदत्त सूरि, जयदेव मुनि आदि की गणना की जा सकती है ।
जोइन्दु की विचारधारा के अध्ययन से यह स्पष्ट परिलक्षित हो जाता है कि यद्यपि उन पर जन-धर्म-दर्शन की छाप स्पष्ट है फिर भी वे सम्प्रदाय-विशेष की सीमा रेखा में आबद्ध नहीं हो सके हैं। जिस क्रान्तिकारी विचारधारा का श्रीगणेश उपनिषदों से हुआ और बुद्ध, महावीर से होता हुआ सिद्धों एवं सन्तों तक आया उसी विचारधारा की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में जोइन्दु की यह रचना है। जोइन्दु की यह मान्यता है कि विभिन्न स्रोतों से निकलकर विभिन्न मार्गों से बहती हुई नदियां जिस प्रकार एक ही महासमुद्र में