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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन 15 जलकर भी मुझे हमेशा प्रकाश से सराबोर किया है। मैं उनके पावन पाद-प्रसूनों में अपनी श्रद्धा ज्ञापित करती हूँ।
इस शोधकार्य को प्रारम्भ से लेकर अन्तिम पड़ाव तक कुशलतापूर्वक पहुँचाने वाले, प्रज्ञामनीषी, अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के जैन-विद्वान् माननीय डॉ. सागरमलजी जैन के प्रति भी हृदय से कृतज्ञ हूँ। मैं अपने-आप को भाग्यशाली मानती हूँ कि आपश्री का पावन सान्निध्य मुझे मिला। आपने न केवल इस शोधप्रबन्ध का सफल निर्देशन ही किया, वरन् मुझे मूलग्रन्थ के अनुवाद-कार्य में भी प्रतिसमय सहयोग प्रदान किया है। उदार व्यक्तित्व के धनी डॉ. सागरमलजी जैन ने इस ग्रन्थ को सम्पूर्ण करने हेतु “प्राच्यविद्यापीठ" शाजापुर में जो सुविधाएँ प्रदान की, उसके लिए भी मैं उनकी आभारी हूँ। इस शोधप्रबन्ध को मूर्तरूप देने में उनका अमूल्य योगदान रहा है। निःसन्देह, इस शोधग्रन्थ के निर्माण का श्रेय उन्हीं को जाता है। मैं विनम्रभाव से उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ। वस्तुतः, डॉ. सागरमलजी जैन की प्रेरणा, प्राच्यविद्यापीठ का विशाल पुस्तकालय और वहाँ का शान्त वातावरण इस लक्ष्य की प्राप्ति में सर्वाधिक सहायक सिद्ध हुए हैं।
प्राणीमित्र, कर्मठ समाजसेवी कुमारपाल भाई वी. शाह के प्रति भी अपना आभार प्रकट करती हूँ, जिन्होंने मुझे ज्ञानार्जन हेतु हमेशा प्रेरित किया।
बडौदा निवासी श्री नरेशजी पारख एवं श्री लक्ष्मीचंदजी झाबक के अगाध ज्ञान-प्रेम एवं गुरु-भक्ति को भी विस्मृत नहीं कर सकती हूँ। आपने न केवल ज्ञानार्जन में अर्थ-सहयोग ही प्रदान किया, वरन् इस कार्य के प्रेरणा-स्रोत भी रहे। इसके साथ ही बड़ौदा श्रीसंघ का जो सहयोग रहा, वह भी अविस्मरणीय है, एतदर्थ मैं उनकी भी हृदय से आभारी हूँ।
इस शोध-सामग्री को कम्प्युटराइज्ड करने में श्री संजयजी सक्सेना एवं श्री अमितजी परमार का एवं प्रफ-संशोधन में श्री चैतन्यकुमारजी सोनी, शाजापुर का सहयोग रहा है, एतदर्थ उनके प्रति भी कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ।
इनके अतिरिक्त प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस शोधप्रबन्ध के प्रणयन में जो भी सहयोगी बने हैं, उन सबके प्रति भी मैं हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ।
- साध्वी मोक्षरत्नाश्री
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