________________ वर्णव्यवस्था-१८५,संस्कार एंव विवाह-१८८, शिक्षा१८६,स्त्रियों की स्थिति-१६० भोगोलिक-लोक सम्बन्धी मान्यताएं एंव लोक सम्बन्धित पर्वत,नदी,द्वीप क्षेत्र आदि ' का वर्णन-१६१ धार्मिक-धार्मिक परिस्थिति-१६६,जनवर्ग एंव राज्याश्रय प्राप्त श्रावक धर्म १६७.गृहस्थ के कर्तव्य __-२०१,सल्लेखना-२०२,मोक्ष-२११, सप्तम 166 अभिलेखीय साहित्य जैन अभिलेख उत्कीर्ण करने के साधन, प्रकार, उद्देश्य पद्धति एवं भाषा-२३०, अभिलेखों में वर्णित समाज वर्णाश्रम व्यवस्था-२३२, संस्कार-२३८, विवाह एवं सतीप्रथा-२३६, शिक्षा-२४०, स्त्रियों की स्थिति-२४०, अर्थव्यवस्था-कृषि एवं सिंचाई के साधन-२४१, भूमि एवं उपज की माप-२४३, व्यापार-२४६। राजनैतिक स्थिति- विकेन्द्रीकरण की प्रक्रिया-२४७, साम्राज्य विभाजन-२४६, राजा, युवराज एवं उत्तराधिकार-२५२. मंत्रिमंडल-२५४, परराष्ट्रविभाग-२५४, सेनाविभाग-२५५, अर्थविभाग एवं कर व्यवस्था-२५७। धार्मिक सिद्धान्त एवं स्थिति - मुनिव्रत-२५६-६०, मंदिर एवं मूर्ति निर्माण-२६१, दान, दान के अवसर एवं / जैनसंघ एवं आचार्यों की वंशावली- संघ, गण, गच्छ, अन्वय, बलि का प्रारंभ, विकास एवं भेद-२७२। 1. मूलसंघ - देवगण, सेनागण, (पोगरि या होगरिगच्छ, चन्द्रकवाटअन्वय) देशीगण-२७७, (क) पुस्तकगच्छ-पनसोगेवलि, इंगुलेश्वर वलि, (ख) आग्रसंघग्रहकुल, (ग) चन्द्रराचार्याम्नाय, (घ) मेणदान्वय सुरस्थगण (कोरूगच्छ, चित्रकूटान्वय) क्राणूरगण, (तिन्विणीगच्छ, मेषपाषगच्छ, पुस्तक गच्छ) वलात्कारगण। 2. यापनीय संघ - नन्दिगण, पुन्नागवृक्षमूलगुण, कुमुदिगण, कण्डूरगण एवं कारेयगण। 3. द्राविड़सा 4. माथुरसंघ (लाटवागण गण) 5. गौड़ संघ, जम्बूखण्डगण, सिंहदूरगण।