________________ xiii . -74, आचार,समुदाय,सांस्कृतिक एंव साहित्यिक क्षेत्र में जैनेतर साहित्य का सृजन एंव संरक्षण प्रदान करना७५, सामाजिक एंव आध्यात्मिक समानता को स्थापित कर प्राणीमात्र के लिए साधना का मार्ग प्रस्तुत करना .76, शान्तिमय जीवन पर बल-७६, कर्म एंव पूर्वभवों के सम्बन्धों को स्पष्ट करना, आत्मा की अनन्त शक्तियों का वर्णन करना-७७, तत्कालीन जीवन के सभी क्षेत्रों के महत्वपूर्ण पक्षों का उल्लेख करना -78 / तृतीय जैन इतिहास का विषय और विकास जैन परम्परा में प्राप्त जैन इतिहास का प्रारम्भिक उल्लेख -76, तीर्थकरों द्वारा समय समय पर दिये गये उपदेशों का कालक्रमानुसार लुप्त एंव क्षीण होना-८०, जैन इतिहास लेखन का प्रारम्भ एंव आगम साहित्य में वर्णित विषय-८२, आगम साहित्य पर लिखे गये व्याख्यात्मक साहित्य में आगमों में वर्णित विषय का विकास-८३,धार्मिक-८४, निवास स्थान, बैराग्य,दीक्षा, निष्कमण संस्कार,मुनिआचार,व्रतसंयम गमनानगमन, विद्यामंत्र एंव विधान,आदर्श एंव अपवाद मार्ग का अवलम्बन जैनसंघ-८६, धार्मिक सहिष्णुता एंव समन्वय वाद-६०, त्रेशठ शलाका पुरुषों के जन्म दीक्षा आदि स्थान एंव तत्कालीन समाज संस्कृति एंव राजनीति का वर्णन-६१, पुराण,चरित,कथा साहित्य एंव अभिलेखीय साहित्य में इन विषयों का विकास एंव सिद्धान्त रुप में वर्णन -62 / चतुर्थ पुराण पुराण का अर्थ एंव उसकी व्याख्या-६४,जैनपुराणों का उद्देश्य-६५, जैनपुराणों के लक्षण-६५, जैनपुराण लेखन की पद्धति एंव विशेषताएँ-६८, पुराणों में वर्णित विषय - भोगोलिक-लोक सम्बन्धी मान्यताए-१००,जम्बूद्वीप-१०१ क्षेत्र.१०२, कुलाचल.१०४, उत्तरकुरु एंव देवकुरु-१०७, अन्य द्वीप-१०८, उर्ध्वलोक एंव ज्योर्तिलोक-१११, /