Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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( १५ ) दिगम्बर जैन समाज में सर्व प्रथम इस विषय की अोर श्री नाथूराम जी प्रेमी तथा पं० जुगल किशोर जी मुख्तार का ध्यान गया । इन दोनों अादरणीय व्यक्तियों ने अपने पुरुषार्थ और लगन के बल पर अनेक जैनाचार्यों और जैनग्रन्थों के इतिवृत्तों को खोजकर जनता के सामने रखा । अाज के जैन विद्वानों में से यदि किन्हीं को इतिहास के प्रति अभिरुचि है तो उसका श्रेय इन्हीं दोनों विद्वानों को है। कम से कम मेरी अभिरुचि तो इन्हीं के लेखों से प्रभावित होकर इस विषय की ओर आकृष्ट हुई।
सन् १९५४ के करीब कुछ सामयिक परिस्थिति वश, जिसका संकेत डा. वासुदेव शरण अग्रवाल ने अपने प्राक्कथन के प्रारम्भ में किया है, जैनसाहित्य के इतिहास निर्माण की चर्चा बड़े जोरों से उठी और उसको उठाने का बहुत कुछ श्रेय न्यायाचार्य पं० महेन्द्र कुमार जी को था । उसी के फल स्वरूप श्री गणेश प्रसाद वर्णी ग्रन्थमाला काशी ने उस कार्य का भार उठाया और कुछ विद्वानों को उसका भार सौंपा, जिनमें एक मेरा भी नाम था । पं० महेन्द्र कुमार जी तो स्वर्गवासी हो गये और मुझे अकेले ही इस भार को वहन करना पड़ा। मैं न तो कोई इतिहास का विशिष्ट अभ्यासी विद्वान हूँ और न ऐसे महान् कार्य के लिए जिस कोटि के ज्ञान की अाबश्यकता है वैसा मुझे ज्ञान ही है। किन्तु 'न कुछ से तो कुछ बेहतर होता है इस लोकोक्ति को ध्यान में रखकर मैंने यह अनधिकार चेष्टा की है। और इस श्राशा से की है कि मेरी गलतियों से प्रभावित होकर ही शायद कोई अधिकारी व्यक्ति इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए तैयार हो जाये। यदि मेरी यह अाशा पूर्ण हुई तो मैं अपने प्रयत्न को सफल समझंगा। ___यह केवल जैनसाहित्य के इतिहास की पूर्व पीठिका है। जैनसाहित्य का निर्माण जिस पृष्ठभूमि पर हश्रा उसका चित्रण करने के लिये इस पीठिका में जैनधर्म के प्राग इतिहास को खोजने का भी प्रयत्न किया गया है | साहित्य का इतिहास तो अागे प्रकाशित होगा। _ मुझे इस कार्य में जिन महानुभावों से सहयोग मिला उनके प्रति भी आभार प्रकट करना मेरा कर्तव्य है। वर्णीग्रन्थ माला के मंत्री पं० वंशीधर जी व्याकरणाचार्य और संयुक्त मंत्री पं० फूलचन्द जी सिद्धान्त शास्त्री का मुझे पूरा सहयोग प्राप्त हुअा और बे बराबर मेरा
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