Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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में बहुत कुछ अादान-प्रदान भी चलता रहा है। श्रमण परम्परा के कारण ब्राह्मण धर्म में वानप्रस्थ और सन्यास को प्रश्रय मिला, एवं शंकराचार्य ने तो दशनामी संन्यासियों के रूप में मानों श्रमणों जैसा ही नया संगठन खड़ा कर दिया, जो आज तके जीवित है । उधर ब्राह्मणों और भागवतों के गृहस्थ सम्बन्धी सम्मानित प्रादों से श्रमण सम्प्रदायमें भी गृहस्थ आश्रम को प्रतिष्ठा प्राप्त हुई जो अाज भी जैनधर्म में सुरक्षित है। प्राचीन उल्लेखों से ज्ञात होता हैं कि अनेक गृहपति बौद्ध धर्म के अाधार स्तम्भ थे। ___इन मिले जुले तारों या उलझे हुए धागोंको सुलझाना ऐतिहासिक का कर्तव्य है। इसके लिए मन में सहानुभूति और सहिष्णुता की परम श्रावश्यकता है। सच्चे ऐतिहासिक को उस प्रकार का मानस. अपने भीतर बनाना चाहिए जो राष्ट्रीय संस्कृति के समग्र तत्त्वों को सम्प्रीति के चक्ष से देख सके। इस उद्देश्य से सामग्री को दृष्टिपथ में लाने वाले जितने भी प्रयत्न हों, स्वागत के योग्य हैं । सत्य यह है कि हमारी निजी व्यक्तिगत मान्यताओं से इतिहास के देवताओं का श्रासन कहीं ऊँचा है।
हमें प्रयत्न करना चाहिये कि हमारे अन्वेषण के दो पुष्प वहां तक , पहुँच सकें । इस दृष्टि से हम श्री कैलाश चन्द्र जी के इस प्रयत्र का अभिनन्दन करते हैं। मालवीय जयन्ती। ( डा० ) वासुदेव शरण अग्रवाल काशी विश्व-विद्यालय
अध्यक्ष इन्डोलॉजी कालेज
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