Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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'उत्तरपुराण' का । पउम चरियं का कथानक अधिक मान्य और प्राचीन है जबकि उत्तरपुराण का कथानक अद्भुत रामायण की याद दिलाता है । उत्तरपुराण के अनुसार संक्षिप्त राम कथा इस प्रकार है-
राजा दशरथ वाराणसी के राजा थे । राम की माता का नाम सुवाला और लक्ष्मण की माता का नाम कैकेई था । भरत और शत्रुघ्न की माताओं के नाम नहीं बताये गये हैं; केवल इतना ही उल्लेख है किं वे किसी अन्य
रानी से उत्पन्न हुए थे ।
सीता मन्दोदरी के गर्भ से उत्पन्न हुई थी । उसके गर्भ में आते ही लंका में अनेक उपद्रव होने लगे थे । नैमित्तिकों ने बताया कि यह पुत्री कुल का नाश करने वाली होगी । अतः रावण ने उत्पन्न होते ही मारीचि के हाथों उसे जनक के राज्य में गड़वा दिया । घर बनाने के लिए भूमि खोदते समय वह कन्या नगर-जनों को मिली। उन्होंने राजा जनक को बुलाकर सौंप दी । जनक ने उसका पुत्रीवत् पालन-पोषण किया । यही कन्या सीता के नाम से प्रसिद्ध हुई ।
जब सीता विवाह योग्य हो गई तो जनक ने एक यज्ञ किया । उसकी रक्षा के लिए राम को बुलवाया और सीता का विवाह उनके साथ कर दिया ।
वाराणसी के निकट ही चित्रकूट वन में राम-सीता लक्ष्मण आदि उद्यान क्रीड़ा को जाते हैं । नारद के मुख से सीता के रूप की प्रशंसा सुनकर रावण उसे चुरा ले जाता है । रावण को मार कर दोनों भाई सीता को वापिस ले आते हैं । लक्ष्मणजी असाध्य रोग से पीड़ित होकर मर जाते हैं और राम श्रामणी दीक्षा लेकर तप करते और मुक्त हो जाते हैं ।
इस प्रकार इस रामायण में कैकेई के कारण हुआ वनवास, सीता परित्याग, सीताजी की अग्नि परीक्षा आदि अनेक घटनाओं का उल्लेख मात्र भी नहीं है ।
महाकवि पुष्पदन्त ने भी अपने उत्तर-पुराण में भी यही कथा लिखी है और चामुंडराय पुराण (कन्नड़ भाषा की जैन रामायण) में भी इसे ही अपनाया गया है ।