Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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अपभ्रंश भाषा में
7.
महाकवि और वैयाकरण स्वयंभूसूरि ने अपभ्रंश भाषा में १२००० श्लोक प्रमाण 'पउम चरिउ ( राम चरित) रचा। उनके विद्वान पुत्र त्रिभुवन स्वयंभू ने इस ग्रन्थ का संवर्द्धन किया । इसकी मौलिक विशेषताओं की प्रशंसा राहुल सांकृत्यायन ने भी की। दूसरा ग्रन्थ 'तिसट्ठि महापुरिस गुणालंकारु है । कन्नड़ भाषा में
कन्नड़ दक्षिण भारत की प्रमुख भाषा है । पम्प, पीन और रत्न इस भाषा के अपने युग के श्रेष्ठ कवि थे और तीनों ही जिनधर्मानुयायी । पौन्न ने रामाभ्युदय नामक काव्यं रचा । कविश्री नागचन्द्र ने रविषेण और विमलसूरि के राम-काव्यों के आधार पर 'रामचंद्र चरित्र' नामक काव्य लिखा । तेरहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में मुनिश्री कुमुदेन्दु ने 'कुमुदेन्दु रामायण' की रचना की । राजस्थानी भाषा में
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राजस्थानी भाषा में भी जैन मनीषियों और विद्वानों ने राम कथा सम्बन्धी अनेक ग्रन्थ लिखे । श्री अगरचन्द नाहटा ने अपने एक लेख में २२ ग्रन्थों का परिचय दिया है ।' प्राचीन रामायणों में यतिराज श्रीकेसराज जी कृत रामराँस' एक सरस तथा उत्कृष्ट राजस्थानी गेयकाव्य है । वर्तमान में मरुधर - केसरी श्री मिश्रीमलजी महाराज कृत 'रामायण भी काव्य की दृष्टि से बड़ी उत्तम रचना है ।
हिन्दी में
राष्ट्र भाषा हिन्दी में भी राम चरित सम्बन्धी अनेक ग्रन्थों की रचना हुई है । जैन दिवाकर चौथमल जी महाराज की आदर्श रामायण, पं० श्री शुक्ल चन्द्र जी महाराज की जैन रामायण भी प्रसिद्ध हैं ।
जैन रामायणों में वर्णनः वैविध्य
जैन रामायणों में राम कथा के दो रूप मिलते हैं - एक विमल सूरिकृत 'पउम चरियं' व रविषेण के 'पद्मचरित्र' का और दूसरा गुणभद्राचार्य के
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त अभिनन्दन ग्रन्थ, पृष्ठ ८४०