Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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( २१ ) भग उतना ही जैनपरम्परा में भी। प्राचीनता और विपुलता दोनों ही दृष्टियों से जन राम-कथा साहित्य समृद्ध है । जैन मनीषियों ने अनेक भाषाओं में राम-कथा का प्रणयन किया है । भारत की लगभग सभी समृद्ध और देशज भापाओं में इन मनीपियों ने राम-कथा का वर्णन किया है।
प्राचीन और अर्वाचीन जैन मनीपियों द्वारा रचित राम-कथा सम्बन्धी कुछ प्रमुख ग्रन्यों का कालक्रमानुसार संक्षिप्त विवरण निम्न हैअन्य का नाम
रचयिता - समय पउम चरियं (प्राकृत)
विमलमूरि ई० दूसरी-तीसरी
शताब्दी पद्म पुराण (संस्कृत)
रविषेण .
सातवीं वसुदेव हिन्डी (प्राकृत) संघदासगणी उत्तर पुराण (संस्कृत)
गुणभद्र पउम चरिउ (अपभ्रंश) स्वयम्भू आठवीं चउप्पन्न महापुरिस चरियं (प्राकृत) शीलांकाचार्य महापुराण (संस्कृत)
पुप्पदन्त
दसवीं वृहत्कथा कोप (संस्कृत)
हरिषेणं
दसवीं पंप रामायण (कन्नड़)
नागदेव (चन्द्र) ग्यारहवीं , कहावली (प्राकृत)
भद्रेश्वर त्रिषष्टि शलाका पुरुष (कन्नड़)
चामुण्डराय धर्म परीक्षा (संस्कृत)
अमितगति विपष्टिशलाकापुरुष चरित्र हेमचन्द्राचार्य कुमुदेन्दु रामायण (कन्नड़)
कुमुदेन्दु
तेरहवीं अंजना पवनंजय (संस्कृत) जीवन संबोधन (संस्कृत)
चौदहवीं , शत्रुञ्जय महात्म्य (संस्कृत)
धनेश्वर रामचरित्र (संस्कृत)
सोलहवीं ,
नवी
बारहवीं
देवविजय