Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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. प्रतिबिंव अरु. लौकिक कलंक प्रचण्ड पावक महुँ जरे ।....
प्रभु चरित काहु न लखे नभ सुर सिद्ध मुनि देखहिं खरै ।।१।।.. धरि रूप.पावक पानि गहि श्रीसत्य श्रुति..जग विदित जो । जिमि छीरसागर इन्दिरा रामहिं समपि. आनि सो..... सो राम बाम विभाग राजति रुचिर अति सोभा भली । .. नव नील नीरज निकट मानहुँ कनक पंकज की कली ॥२॥ ..
- लंका काण्ड, दोहा १०६ इस प्रकार जब नकली सीता का हरण हुआ, वही रावण की लंका में रही, और वह अग्नि में जल गई तथा उसके साथ समस्त लौकिक कलंक भीतो फिर असली सीता पर लौकिक कलंक क्यों लगा और क्यों उनका परित्याग हुआ? ''. ...........
तपस्या करते हुए निरपराध शम्बूक वध पर तो अनेक विद्वान अँगुलियाँ उठा ही चुके हैं। ... ... . .. :::. :: :::: 4. किन्तु इन भिन्नताजन्य विवादों में पड़ना, न उचित है और न अभीष्ट । यहाँ इन्हें दिखाने का आशय तो केवल इतना ही है कि राम-कथा के सम्बन्ध में अनेक लेखकों में ही नहीं वरन् एक ही लेखक और एक ही ग्रन्थ में अनेक विवादास्पद स्थल हैं। , .
.. - बौद्ध परम्परा में राम-कथा.... वौद्ध परम्परा का कथा-साहित्य जातकों में वर्णित है। इनमें एक दशरथ जातक भी है। इसमें राम-कथा दी गई है। इसके अनुसार-::...
राजा दशरथ काशी के राजा थे। उनकी सोलह हजार रानियाँ थीं। . मुख्य रानी से राम और लक्ष्मण दो पुत्र तथा सीता एक पुत्री उत्पन्न हुई। . . कालान्तर में उस मुख्यं रानी की मृत्यु हुई तो दूसरी रानी पटरानी बनी। उससे भरत नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ। .. ..
नई पटरानी अपने पुत्रं भरत को राज्य दिलवाना चाहती थी। अतः राजा ने यह सोचकर कि वह राम-लक्ष्मण-सीता को मरवा न डाले उन्हें