Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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3. यदि यहां पर चंत्य शब्द का अर्थ साधु किया जावे तो
जब पाठवें द्वीप में मनुष्य ही नहीं है तो वहां साधु भी नहीं हो सकते। यदि यह मान भी लिया जावे कि मनुष्यलोक से गया हुआ कोई साधु वहां होगा उसे बन्दन करने के लिये जाते हैं तो यह भी संभव नहीं है। क्योंकि पहली बात तो यह है कि वहां मानव का जन्म न होने से साधु का अभाव है । दूसरी बात यह है यदि यह कहें कि ढाईद्वीप से गये हुए वहीं साधु को वन्दन करने के लिये जाते हैं, तो यह भी उचित नहीं है क्योंकि वहाँ ढाईद्वीप के साधु बाग-बगीचे के सैर सपाटे के लिये गये हो ऐसा कभी नहीं हो सकता। यह साधु के आचार के एकदम विरुद्ध है यदि जाता है तो वह साधु ही नहीं है और शुद्ध आचरण वाले साधु को वहां बाग बगीचों की सैर करने जाने का कोई प्रयोजन ही नहीं है । कदापि कोई लब्धिधारी साधु वहां के शाश्वत जिनमंदिरों (चैत्यों) को वन्दन करने के लिये जावे तो वहां वह चिरकाल तक रहता भी नहीं है और यह जरूरी भी नहीं है कि जब वह साधु वहां जावे उस समय इधर से कोई साधु वहां गया हुआ ही हो । अथवा अवश्य विद्यमान होगा ही। अतः इस सूत्र पाठ में दिये गये तीन बार 'चेइयाई' (चैत्यों) शब्द का अर्थ साधु भी संभवः नहीं है। कारण यह है कि जब भी चारण लब्धिधारी मुनि नंदीश्वर द्वीप जाते हैं तब वहां घे अवश्य चैत्यवन्दन करते ही हैं। स्पष्ट है कि यहां पर सदा विद्यमान कायम रहने वाले चैत्य होने चाहिये और वे शाश्वती (सदाकाल विद्यमान रहने वाली) जिनेन्द्र (तीर्थकर) भगवन्तों की प्रतिमाए ही है और उन्हें ही वन्दन किया जाता है।
चैत्य शब्द का अर्थ साधु नहीं है, इस पर विशेष प्रकाश डालना भी आवश्यक है। यदि साधु शब्द चैत्य का पर्यायवाची मान लिया जावे तो भी घटित नहीं होता। शास्त्रों में जहां-जहां साधुओं का वर्णन आया है, वहां-वहां साहू, भिक्खू, समण, निग्गंठ आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है । पर इन शब्दों की तरह साधु को कहीं चेइय कहकर संबोधन नहीं किया गया ? ऐसा उल्लेख कहीं भी जैन-जैनेतर साहित्य में नहीं मिलता। ऐसा अर्थ मानने वालों को चाहिये कि चैत्य शब्द का प्रयोग साधु के लिये कहाँ पर हुआ है एकाध जगह पर तो बतला दें कि कहीं ऐसा भी कहा है। भगवान् महावीर के चौदह हजार साधुओं की संख्या थी, उनके स्थान पर चौदह हजार चैत्यों" का प्रयोग कहीं नहीं हुआ है ।
4. यदि यहां पर चैत्य शब्द का अर्थ ज्ञान किया जावे तो
जैनागमों में जहां-जहां भी ज्ञान का वर्णन आया है, वहां-वहां ज्ञान के लिये 'नाण' शब्द का प्रयोग हुआ है। कम से कम एकाध जगह तो 'नाण' शब्द के बदले 'चैत्य' शब्द का प्रयोग आगम में होना चाहिये था। परन्तु ऐसा कहीं भी नहीं पाया जाता।
श्री नन्दी सूत्र में ज्ञान का वर्णन आया है । वहां लिखा है कि "नाणं पंचविह
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