Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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आठवां प्रकाश चैत्य संबंधी विशेष विवरण
चैत्य पांच प्रकार के होते हैं चैत्यानि च (1) भक्ति, (2) मंगल, (3) निश्राकृत, (4) अनिश्राकृत (5) शाश्वतं चैत्यभेदात् पंच, यत:
"भत्ती मंगल चेइअ निस्सकड-मनिस्सकडं चेइए वा वि।
सासय चइअ पंचममुइठं जिण वरिवेहिं ॥1॥" तत्र नित्य पूजार्थ गहे कारिताहत्प्रतिमा भक्तिचैत्यं, गहद्वारोपरि तिर्यकष्ट मध्यमागे घटितं मंगल चैत्यं, गच्छसत्क चैत्यनिश्राकृतं, सर्वगच्छ साधारणं अनिवाकृतं, शाश्वत चत्यं प्रसिद्धं । उक्त च
"गिह-जिन-पडिमाए भत्ति चेइ, उत्तरंगघडिअम्मि, जिन-बिबं मंगल चेइ तिसमयन्नुणोवि त्ति ॥1॥ निस्सकडं जं गच्छति तदिअरं अनिस्सकडं। सिद्धायणं चइयं इअ-पणगं वि निदिट्ठा ।।2।।
(धर्मसंग्रह पृ० 125) 1. भक्ति चैत्य, 2. मंगल चैत्य, 3. निश्राकृत चैत्य, 4. अनिश्राकृत चैत्य, 5. शाश्वत (स्वाभाविक चैत्य), इनके अतिरिक्त 6. सार्मिक चैत्य भी है।
1. भक्ति चैत्य-कोई सेठ साहूकार, रहीस, राजा, महाराजा, चक्रवर्ती अपने अन्तःपुर, महल या मकान में अपने और अपने घरवालों के लिए नित्य दर्शन, पूजन, भक्ति के लिए अथवा घर में रोगी आदि को जिनदेव के दर्शनों की सुलभता केलिए. परिवार में भक्ति का वातावरण कायम रखने के लिए श्री जिनेश्वरदेव का मन्दिर बनवाता है उसे भक्ति चैत्य कहते हैं अथवा घर चैत्यालय भी कहते हैं।
___ अथवा एकांत-प्रशांत-निर्जनस्थान में गिरि गुफाओं में एकाग्रचित्त से एकांत ध्यानादि में आरूढ़ होने के लिए श्री जिनेन्द्रदेव का मन्दिर निर्माण कराना भक्ति चैत्य है।
___ इसी कारण से पहाड़ों के शिखरों पर इलोरादि की गुफाओं में, उड़ीसा में महाराजा खारबेल द्वारा निर्मित खण्डगिरी-उदयगिरि की गुफाओं आदि में वर्तमान में भी उक्त चैत्यों का अस्तित्व है।
2. मंगल चैत्य-घर के मुख्यद्वार के ऊपर श्री जिनेश्वरदेव की मूर्ति कोतर दी जाती है अथवा बना दी जाती है। यह प्रतिमा सेवा पूजा केलिये नहीं होती, परंतु मंगल केलिए बनायी जाती है। इसे मंगल चैत्य कहते हैं । व्यवहार प्रवृति में भी स्वरूप जागृति बनी रहे इसलिए प्रत्येक जैन गहस्य इस ध्येय की अनन्य श्रद्धा भक्ति द्वारा
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