Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi

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Page 233
________________ 216 पैर न आवें। फिर मोरपीछी से प्रभुजी की प्रतिमा और वेदी आदि को ध्यान पूर्वक ऐसे पोंछना चाहिए कीटादि को, सूक्ष्म-स्थूल चींटी-जीव जन्तु हो तो उसे हटा देना चाहिये। 1. जल पूजा-फिर सबसे पहले 'मूलनायक' (मंदिर में मुख्य मूलप्रतिमा) को पंचामृत से कलश में भरे हुए को हाथ में लेकर जलपूजा का काव्य पढ़कर स्नान कराते हुए जल पूजा करें। इससे प्रतिमा के गीले हो जाने पर एक कटोरी में सादा पानी लेकर उसमें छोटा कपड़ा भिगोकर इस कपड़े से प्रतिमा पर लगा हुए चंदन को इस प्रकार पोंछे कि सारा चंदन उतर जावे । फिर सादा जल के कलश से प्रतिमा पर पानी डालते हुए खसकूची से धीरे-धीरे केशर से प्रतिमा को साफ करके पंचामृत से भरे दूसरे कलश से स्नान कराकर पश्चात् सादा जल से स्नान कराकर एकदम साफ़ कर लें। इसी प्रकार मंदिर में विराजमान सब प्रतिमाओं को स्नान कराकर एक दम साफ़ कर लेना चाहिये । फिर पाटलहने (पवित्र उज्ज्वल दो कपड़ों) से जहां प्रतिमायें विराजमान हों क्रमशः उस वेदी के फर्श तथा दीवालों को पोंछ कर एकदम सुखा लेना चाहिये । फिर तीन अंगलहनों (प्रतिमा के शरीर को पोंछने वाले कपड़ों) से क्रमशः पोंछकर एकदम जल रहित कर लेना चाहिये । जल से स्नान पूजा को प्रक्षाल पूजा भी कहते हैं । प्रक्षाल के बाद अंगलू हनों से प्रतिमा को ऐसे साफ करके सुखा लेना चाहिए कि उसका कोई भी अंग-प्रत्यंग गीला न रहे--एकदम निर्जल हो जाना चाहिए। प्रक्षाल करने से पहले पीतलादि की एक खाली कुंडी इस प्रकार रख लेना चाहिए जिससे प्रक्षाल का जल उसमें जाकर गिर जावे । फैले बिल्कुल नहीं। प्रक्षालके बाद इस जल को ऐसे स्थान पर फैला देखें कि पाओं में न आवे और जल्दी सूख जावे ताकि उसमें जीवोत्पत्ति न हो। (2) चन्दन पूजा-कही हुई विधि से जल (प्रक्षाल) पूजा करके केसर-चंदन कप र आदि मिश्रण को कटोरी में लेकर चन्दन का काव्य पढ़कर प्रतिमा के नवांगों के क्रमशः प जा के दोहे मन में पढ़ते हुए दाहिने हाथ की अनामिका (टचली तथा 3. प्रतिमा को खसकूँची से ज़ोर ज़ोर ले नहीं घिसना चाहिए । जोर से घिसने से प्रतिमा जी की क्षति होती है। लेखादि के घिस जाने से प्रतिमा की कला तथा प्राचीनता के इतिहास तथा भराने वाले श्रावक-श्राविकाओं, प्रतिष्ठा कराने वाले आचार्य तथा उनके गच्छ, कुल, शाखा आदि परम्परा तथा नामादि के इतिहास में हानि होती है । तथा प्रतिमा के अंगोंपांग के घिस जाने से खण्डित एवं विकृत होने की सम्भाना भी रहती है। 4. अकेले चन्दन से पूजा करने से प्रतिमा के अंगों पर काले धब्बे पड़ जाते हैं और अकेले केसर के गर्म होने से प्रतिमा के अंगों में खड्डे पड़ जाते हैं अतः केसरचन्दन-कर्पूर आदि को मिश्रित करके पूजा करने ते ऐसी हानि नहीं होती। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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