Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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सामने खैकर छिद्रों वाले ढकने वाली धूपदानी में रखकर रंगमण्डप में पाट पर प्रभुजी की बाई (डाबी) तरफ रख देना चाहिए।
(5) दीप पूजा-शुद्ध घी का दीपक प्रगटाकर मूलगंभारे के बाहर एक शीशे वाली लालटेन में रखकर दीप पूजा का काव्य पढ़कर प्रमुजी के सामने उस दीपक से पूजा करके पाट पर दाईं (जीमनी) तरफ़ रख देना चाहिए।
(6) अक्षत पूजा-शुद्ध, उज्ज्वल, पवित्र, अखण्डित, जीव जन्तु रहित - चावलों को हाथ में लेका अक्षत पूजा का काव्य पढ़कर पाट या चौकी पर चावलों को स्वस्तिक, उसके ऊपर की तरफ चावलों की तीन ढेरियां उसके ऊँचे अर्धचन्द्राकार तथा उसके मध्य में एक ढेरी बनाकर पूजा करें।
(7) नैवेद्य पूजा-पवित्र, शुद्ध, मिठाई-बताशे-पकवान आदि नैवेद्य पूजा का काव्य पढ़ कर चावलों के बने साथिया पर चढ़ावें।
फल पूजा-फल पूजाका काव्य पढ़कर उत्तम जाति के सूखे मेवे तथा सचित फल चावलों से बनाए हुए अर्धचन्द्राकार पर चढ़ाकर करनी चाहिए ।
(9) आरती और मंगल दीपक पूजा-इस प्रकार अष्ट प्रकारी पूजा करके पश्चात् आरती मंगलदीवा उतारा जाता है। इससे आत्मा का कल्याण होता है। शास्त्रों में आरती को अरात्रिक अथवा आरात्रिक कहा है। आरत्रिक का अर्थ है । शरीर और मन की पीड़ाएं दूर हों। इससे मन की चिंताएं दूर हो जाती हैं और शांति" मिलती है । अरात्रिक शब्द अ-रात्रिक से बना है । जिसका अर्थ होता है रात्रि होने से पहले संध्या समय आरती की जानी चाहिए। आरती पांच अथवा सात दीपकों की - तथा मंगलदीवा एक दीपक का होता है ।
पहले मंगलदीवा प्रकट किया जाता है फिर आरती प्रकट की जाती है । आरती वाली थाली में अपनी शक्ति के अनुसार कुछ द्रव्य डालना चाहिए। आरती खाली नहींकरनी चाहिए। शांति, स्थिरता तथा गंभीरता के साथ अपनी बाईं ओर से आरती को ऊपर ले जाकर दाईं ओर से नीचे उतारना चाहिए। ऐसी विधि को सृष्टि कहते हैं । इससे हमें सुख मिलता है। उल्टी रीति से आरती उतारने का नाम “संहार" है । ऐसा करना उचित नहीं है। इससे हानि होती है । आरती उतार कर पाट आदि पर प्रभु के सामने रख देनी चाहिए। या बढ़ा देनी चाहिये । फिर इसी प्रकार मंगलदीवा उतारना चाहिये । पश्चात पाट आदि पर प्रभु के सामने रख देना चाहिए । उसे बढ़ाना (बुझाना) नहीं चाहिए। मंगलदीवा उतारते समय उसमें कर्पूर भी प्रगट करना चाहिए। . आरती मंगलदीवा प्रभु की नाभि से नीचे तथा प्रभु से ऊँचे नहीं रखने चाहिए।
आरती-मंगलदीपक उतारते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे अपनी नाभि से नीचे और प्रभु के मस्तक से ऊँचे नहीं जाने चाहिए। आरती और मंगलदीवा उतारते समय आरती और मंगलदीपक के पाठ पढ़ते जाना चाहिए। दोनों को करते समय छैने, घड़ियाल, घंट आदि बजाते रहना चाहिए।
धूप, दीप, अक्षत, नैवेद्य, फल, आरती, मंगलदीपक-इन सब पजाओं का
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